पिघलानी होगी बर्फ !  

Posted by roushan in

रहा करती थी
कसमसाहट सी कभी
उबलते हुए सवालों में,

आकुल रहती थीं ऊर्जाएं
उफनकर बह निकलने को

दहकती आग सी होती थी
हर सख्त-ओ-नर्म कोनों में

सुना भर है हमने ।



नही उठते हैं सर अब तो
बढ़ते नही हैं आगे
तरेरकर आँखें
सुलगते हुए सवाल।

आग तो बहुत दूर
अब तो महसूस नही होती गर्मी तक
कहीं आस पास ।

इससे पहले कि बहता हुआ लहू
जम जाए शिराओं में ही
पिघलानी होगी बर्फ
जो जम चुकी है
हमारे चारो ओर ।

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This entry was posted on Dec 30, 2008 at Tuesday, December 30, 2008 and is filed under . You can follow any responses to this entry through the comments feed .

4 comments

Anonymous  

बिलकुल सही है,लेकिन बिना आग के तो बर्फ भी नहीं पिघलनी।

December 30, 2008 at 10:10:00 AM GMT+5:30
Anonymous  

bahut sundar

December 30, 2008 at 11:01:00 AM GMT+5:30
Anonymous  

सही कहा, पर यह बर्फ कैसे पिघले यही तो मसला है।

December 30, 2008 at 3:44:00 PM GMT+5:30
Anonymous  

बहुत सही. अग्नि तो जलानी ही होगी.

January 3, 2009 at 6:00:00 AM GMT+5:30

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