दिनांक 30 नवम्बर 1992 , फैजाबाद शहर के पास एक स्कूल के छात्रावास के बच्चों का ध्यान खींचते हैं धड़धडातेहुए उनके पास आ रहे सी आर पी ऍफ़ के ट्रक। बच्चों का खेल बंद हो जाता है और वो अपने कमरों की खिड़कियों सेचिपक जाते हैं। थोडी देर में स्कूल प्रबंधन से आधिकारिक सूचना जारी हो जाती है ।
स्कूल अनिश्चितकाल के लिए बंद और जल्दी से जल्दी छात्रावास खाली किया जाना है।
आख़िर बड़ों की लड़ाई चल रहीहो तो बच्चे पढाई कैसे करसकते हैं। उनकी कक्षाएं और छात्रावास तो सी आर पी ऍफ़के अस्थायी कैम्प बनेंगे ।राहत की बात इतनी है किकैम्प अस्थाई होंगे।
उन बच्चों में एक बारह साल का बच्चा था । अपने सभी साथियों कीतरह वह भी खेल रहा था , अपने सभी साथियों की तरह वह भी खुशथा कि घर जाने का मौका मिल रहा है । लेकिन साथ ही साथ उसकादिल एक अनजाने डर से भरा जा रहा था।
30 नवम्बर 1992 की उस शाम वह महसूस कर सकता था कि सीआर पी ऍफ़ के ट्रक जो धूल उड़ाते हैं वो एक घुटन सी पैदा करती है। वह महसूस कर सकता था कि जब ठीक ठाकचल रहे समाज में आपात प्रबंधनों की नौबत आए तो यह खतरनाक होता है.
पिछले कुछ दिनों से प्रदेश के मुख्यमंत्री के , देश के प्रधान मंत्री के और ढेर सारे नेताओं के लगातार बयान आ रहे थेकि सबकुछ शांतिपूर्ण निपट जायेगा और सभी के साथ उसे भी भरोसा था पर राजनीति में रूचि रखने वाला वहबारह साल का बच्चा उन सी आर पी ऍफ़ के ट्रकों से असहज हो चला था।
वह एक अजीब सा दौर था ।
दरकती आस्थाओं का दौर
टूटते मिथकों का दौर
निस्तेज जो रहे नायकों का दौर
विभाजनों का दौर
अभी थोड़े ही दिन पहले एकाएक आदर्शवादी युवा सुनील कुमारों के नाम के आगे सिंह, त्रिपाठी , यादव और वर्माजुड़ गए थे ।
अभी कुछ दिन पहले जाति के विभाजनो की आग में युवाओं ने ख़ुद को, अपने सपनो को और उसके साथ समाजको झोंका था।
ये एक टूटन थी
अभी कुछ दिन पहले एक युवा नायक, जो देश को इक्कीसवीं सदी में ले जाने के सपने देख और दिखा रहा था, नेपिछले दिनों की रूढियों के सामने घुटने टेके थे ।
अभी कुछ दिन पहले एक मिस्टर क्लीन अचानक से बदरंग हो उठा था
अभी कुछ दिन पहले एक दिलों पर राज कर रहा सुपर स्टार अचानक नजर से गिर गया था
ये आदर्शों और नायकों का पतन था
ये दूसरी टूटन थी।
अभी कुछ दिन पहले समाज के सामने अर्थव्यवस्था का नया संकट आ पड़ा था । पुरानी आस्थाएं , सोचें, तौर-तरीके छोड़ कर पूरी अर्थव्यवस्था एक परिवर्तन के दौर से गुजर रही थी । एक परिवर्तन का दौर जब हर तरफ़आशंकाएं होती हैं जब हर तरफ़ आने वाली परिस्थियों को लेकर भय होता है ।
ये एक और टूटन थी
इन दरकती हुई आस्थाओं के दौर में जब कुछ भी पहले जैसा नही दिख रहा था ट्रकों से उड़ी धूल पूरे वातावरण कोएक घुटन से भर दे रही थी , उस बच्चे ने महसूस किया कि वो न जाने कहाँ आ गया है। उसने महसूस किया कि वोकुछ नही समझ पा रहा है ।
आज सोलह साल और बीत चुके हैं । उस ३० नवम्बर 1992 की धुंधलाती शाम और उसके बाद आने दिनों ने बहुतकुछ बदल कर रख दिया ।
आज 6 दिसम्बर 2008 को जब मुंबई हमलों के चलते विहिप शौर्य दिवस और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटीकाला दिवस नही माना रही है तो एक 28 साल का युवा ये जानने का बहुत इच्छुक है कि क्या हम उन दिनों कोपीछे छोड़ कर आगे नही बढ़ सकते? आज जब हम एकता का प्रदर्शन कर रहे हैं तो क्या इसी एकता को आगे नहीबढ़ाते रख सकते? क्या रखा है एक विवाद को यूँ ही आगे बढाते जाने में
अतीत का बोझ सबके लिए परेशानी बन रहा है तो क्यों न उसे उतार फेंके और कदम से कदम मिला कर चल पड़ेंएक नए भविष्य की ओर
क्या ऐसा हो पायेगा?
4 comments
'चोर मचाये शोर' ये कहावत आज कितनी भी पुराणी क्यूँ न हो लेकिन आज भी बुरा से बुरा पापी जिस प्रकार अपने पापों को छिपाने के लिए अपनों द्वारा की गई आतंकी गतिविधियों का ठीकरा दुसरो के सिर फोड़कर ख़ुद साफ़ सुथरा इमानदार होने का प्रचार करता नज़र आता है वह आने वाली पीढी के लिए किसी बड़ी तबाही की बात को दर्शाता है| वैसे आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर यहूदी व अमेरिकी पॉलिसी यही है की झूठ को इतनी बार और और ऐसे प्रभावी ढंग से बोला जाए की लोग उसे ही सच मान व समझ लें| विदेशी आतंकियों की इसी पॉलिसी पर पूर्णरूप से संघ परिवार एवं उसके सभी सहयोगी साम्प्रदायिक संगठन व सम्बद्ध राजनैतिक पार्टियाँ चलती नज़र आ रही है| मेरा चोर मचाये शोर कहना इसी ओर इशारा था| भारत में अपनी स्थापना से ही ये लोग अंग्रेजों के एजेंट के रूप में कार्य करते रहे है और देश के स्वतंत्र होते ही इन साम्प्रदायिक आतंकी लोगों ने देश में मुसलमानों के खिलाफ ही खून खराबे और लूटमार का दौर सिर्फ़ शुरू ही नहीं हुआ बल्कि तरह तरह की बहुसंख्यक हिन्दुओं को भी आतंकित करने के प्रयास किए| उसी कड़ी में 30 जनवरी 1948 को देश के राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की हत्या भी इन्ही लोगों ने अपने सदस्य नाथूराम गोडसे जैसे आतंकवादी से करवा दी जबसे आज तक अनेकों क्षेत्रों में किसी न किसी रूप में अपने को देशप्रेमी बताते हुए यह लोग तेज़ी से ताक़तवर होते चले जा रहे हैं जिनके गंभीर परिणाम देश को भुगतने पड़ रहे हैं| कुछ घटनाएँ ये बताने के लिए काफी है कि किस तरह से पुलिस प्रशाशन, सरकार और तंत्र भी इनके साथ खड़ा दिखाई देता है और जाँच के आने पर सुई मुसलमानों कि तरफ़ मोड़ दी जाती है|24 अगस्त २००८ को जन्माष्टमी के दिन कानपूर शहर में राजीव नगर मोहल्ले में बम बनाते समय हुए धमाके में मरने वाले बजरग दल के नगर संयोजक भूपेंद्र सिंह और राजीव मिश्रा पुनः बजरंगदल कि आतंकी गतिविधियों ने.....जारी
Hai,this is bembem here so many times I thought to text u. sorry I couldn't write in hindi but next time sure m writing in hindi. maine kuch likha haibhejne ki koshish karungi.aapke blog se mujhe kafi protshahan mila.
@ बेम
आपकी टिप्पणी देखकर बहुत अच्छा लगा
आपका हमेशा स्वागात है और कभी भी आपको लगे कि आपको कुछ चर्चा करनी है तो जरूर याद कीजियेगा
आप हमें roushan001@gmail.com पर मेल भी कर सकती हैं
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