आज इस ब्लॉग का एक साल पूरा हो रहा है। ऐसा शास्त्रीय विधान है कि इसबात को रेखांकित किया जाय तो हमने भी सोचा कि विधान का पालन करें ही।
ब्लॉग लिखना हमने 2002 में ही शुरू कर दिया था और काफ़ी दिनों तक अंग्रेजीके चक्कर में ही पड़े रहे । इस बीच हमने ब्लॉगर, वर्ड प्रेस, सुलेखा , रेडिफ आईलैंड, वेट पेंट्स और ब्लॉग डॉट को डॉट यु के आदि ब्लोगिंग साइट्स कोआजमाया। 2003 में हिन्दी में भी लिखा पर उस समय अधिकतर जगहविंडोस 98 होता था जिसमे हिन्दी देखने के लिए बड़ी परेशानी उठानी पड़ती थी। होता ये था कि पहले हिन्दी मेंलिखो और फ़िर दोस्तों को बताओ कि फलां सोफ्टवेयर इंस्टाल कर लो तब तुम पढ़ पाओगे। हमें किस्मत के मारेअंग्रेजी में ही लिखते रहे और चिढ़ते रहे (यहाँ अंग्रेजी का अनादर करने जैसी बात नही है अंग्रेजी भी हमें पसंद है परअपनी भाषा तो अपनी ही होती है न )।
इस बीच दुनिया बहुत तेजी से बदल रही थी और हमें पता भी नही चल पाया। 2007 की शुरुआत में एक दिन उन्मुक्त जी ने हमारे एक ब्लॉग पर टिप्पणी की कि हिन्दी में क्यों नही लिखते । इस टिप्पणी को आलस्य के चलतेहमें देख नही पाये और जब देखा तो उनका पीछा करते हुए उनके ब्लॉग पर पहुंचे तो हमें ख़ुद पर बड़ी गुस्सा आईकि हमने हिन्दी में लिखने के लिए कभी कुछ खोजने की कोशिश क्यों नही की। पर इसके बाद भी नया ब्लॉग सिर्फ़हिन्दी में बनाने में काफ़ी समय लग गया । अंत में दिसम्बर 2007 में हमने इस ब्लॉग की शुरुआत सिर्फ़ और सिर्फ़हिन्दी में लिखने के लिए की ।
इस ब्लॉग पर हमारे साथ तीन और लोग लिखते हैं। इसमे से निशा घुमंतू प्राणियों के समूह की सदस्या हैं औरउनकी रूचि राजनीति पर लिखने में है । वैसे वो अक्सर कविता में भी हाथ आजमाने की कोशिश करती रहती हैं।रुपाली हमारी ही तरह अवध (फैजाबाद और लखनऊ ) से जुड़ी हुई हैं । उनकी रूचि इतिहास और अन्य सामाजिकमुद्दों में है. रेवा सामाजिक मुद्दों और साहित्य में विशद रूचि रखती हैं और अपने ब्लॉग पर कई विचारोत्तेजक मुद्दोंपर चर्चा करती और करवाती रहती हैं।
हिन्दी ब्लॉग जगत से हमारा सक्रिय जुडाव बस कुछ ही महीनों पुराना है और कई अच्छे ब्लोग्स पर जाने कासौभाग्य अभी हमें नही मिल पाया है। ब्लोगिंग यूँ तो हमेशा से हमारे लिए सीखने की प्रक्रिया रही है पर जहाँ पहलेये सीखना अधिकतर तकनीकि से संबंधित रहा है वहीं हिन्दी ब्लॉग जगत से जुड़ने के बाद इसमे नए आयाम जुड़तेगए। जोग लिखी , एक जिद्दी धुन , कुछ ख़ास हस्तियां , समाजवादी जन परिषद् , कबाड़खाना , तीसरा खंबा , मेरेगीत , उन्मुक्त , निर्मल आनंद, मानसिक हलचल , हिन्दी वाणी और तस्लीम कुछ ऐसे ब्लॉग हैं जिन्हें जब भी समय मिले देखना अच्छा लगता है ।
कुछ ब्लॉग, कुछ ख़ास लेखन शैली और थोड़ा अलग साहित्यिक पुट के चलते ऐसे हैं जिन पर जब भी समय मिलेएक बार जाने का मन करता है। ऐसे कुछ ब्लॉग कुश की कलम , mahak, मुझे कुछ कहना है, प्रत्यक्षा , दिल कीबात और लहरें हैं।
प्रत्यक्षा जी की लेखन शैली ऐसी है कि हमेशा लगता है कि काश हम भी कुछ ऐसा लिख पाते । खैर कोशिश तो कीही जा सकती है ।
देखते हैं अगले साल तक क्या होता है पर इतना तो निश्चित है कि तब तक कई और ब्लोग्स को पढने और ढेर साड़ीचीजें समझने का मौका मिलेगा ।
इस पुराने से म्यूजियम ने हमें हिन्दी ब्लॉग जगत से जोड़ा इसलिए यह हमारे लिए तो बहुत महत्वपूर्ण है।
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on Dec 12, 2008
at Friday, December 12, 2008
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हमारी बात
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3 comments
Roshan ji ap bahut din se gaayab hain
kai din se aap ne kuchh naya nahi likha
aasha hai sakushal honge
December 27, 2008 at 4:02:00 PM GMT+5:30
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