कश्मीर के नतीजे!  

Posted by roushan in , , ,

पिछले कुछ दिनों से कतिपय कारणों से इन्टरनेट से कुछ दूरी रही और 12 दिसम्बर की पोस्ट के बाद कुछ लिखनेका समय नही मिल सका इस बीच इस ब्लॉग पर रुपाली ने सचिन के बारे में लिखा सचिन हमारे भी पसंदीदाखिलाड़ी हैं। हमें तो ये लगता है कि उनकी लोकप्रियता क्रिकेट की सीमाओं से बढ़ कर है। इस मामले पर रुपाली नेऔर उनके पोस्ट पर प्रतिक्रिया देने वालों ने पहले ही काफ़ी कुछ लिख रखा हुआ है। रुपाली की इस बात से सहमतहुआ जा सकता है कि सचिन की सबसे खूबसूरत पारी अभी आनी बाकी है।
रुपाली ने उस पोस्ट में राजनीतिज्ञों की विश्वसनीयता के बारे में लिखा था जिसे लोगों ने बहुत नोटिस नही किया।उन्ही की तरह तमाम लोग होंगे जो ये मानते हैं कि नेताओं को लोगों में अपने प्रति भरोसा जगाने के लिए कुछकरना चाहिए। जैसे सचिन करते रहते हैं भरोसा जगाने की बात पर हमें एक प्रसंग याद आता है जो हमने कहींपढा हुआ था
बात नेहरू जी की है। 1946 के चुनावों में वो कांग्रेस के प्रमुख प्रचारक थे अपने अभियान के दौरान एक
बार वोकहीं जा रहे थे गर्मी के दिन थे और जैसा होता है चिलचिलाती हुई धूप थी एक जगह पर एक किसान सड़क केकिनारे एक तख्त रख कर बैठा मिला गाड़ी रोक कर पूछने पर पता चला कि वो नेहरू जी का ही इंतज़ार कर रहाथा उसने नेहरू जी के सामने दूध से भरा हुआ बड़ा सा गिलास पेश किया तो नेहरू जी थोड़ा सा हडबडा से गए।
ये दूध पीने के लिए सही समय नही है उन्होंने कहा तो किसान ने सवाल उछाल दिया कि अगर दोपहरी में एकगिलास दूध नही पी सकोगे तो देश कैसे चलाओगे बात तार्किक नही थी पर उस एक किसान की आस्था की बातथी। नेहरू जी ने एक साँस में दूध ख़त्म कर दिया और पूछा कि अब संतुष्ट हो? किसान संतुष्ट था।
नेतृत्व की सफलता तभी है जब वो लोगों में भरोसा जगह सके , भरोसे को बनाए रख सके और समय समय परउठते प्रश्नों का जवाब दे सके दुर्भाग्य से अभी ऐसा नजर नही आता।
लोगों की भावनाओं को समझ पाने की भूल जम्मू और कश्मीर में अलगाववादी भी कर रहे हैं। घाटी के चुनावों मेंलोगों की भागीदारी ने ये साफ़ कर दिया कि जनतांत्रिक प्रक्रियाओं में भागीदारी उनकी भी प्राथमिकता है। पूरेचुनाव भर हम जैसे देश के हमारे कोने किसी लोग बस यही जानना चाहते रहे थे कि चुनाव में मतदान प्रतिशतक्या रहा है। हर बढती हुई भागीदारी की ख़बर एक संदेश जैसी है कि अलगाववादी बातों के अलावा और भी कुछ हैजिनसे आम कश्मीरी का ध्यान बटाने की कोशिश अलगाववादी करते रहे हैं. निश्चित तौर पर जबरदस्ती येमतदान नही कराया जा सकता था.
कल नतीजे आए , उसमे जो भी हो हम जैसों के नतीजे तो मतदान के प्रतिशत ही थे .
अब जिम्मेदारी बनती है नई सरकार की .
कश्मीरी पंडित अपने घरों से दूर कैम्पों में जिंदगी गुजार रहे हैं उनकी सुध लेना नई सरकार की प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर होना चाहिए. कश्मीरियों को (विस्थापित पंडितों सहित ) जिंदगी को सवारने और ऊंची छलाँग भरने के मौके उपलब्ध कराने होंगे.
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इन चुनावों से एक संदेश ये भी जाता है कि अरिंदम चौधरी या अरुंधती रायों की सोच के उलट कश्मीर सकारात्मक ढंग से सोचने के लिए तैयार है. जो कश्मीरी नेता इसे नही समझ पायेंगे वो धरा से अलग हो जायेंगे . अलगाव वादियों को चाहिए कि एक अस्थिर पकिस्तान के और उसकी दोस्ती के सपने छोड़ दें क्योंकि वो तो बंगालियों का भी नही हुआ है. देखें कि भारत में उनके लिए क्या है .
कश्मीरी जनता तो आगे बढ़ना चाहती है

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This entry was posted on Dec 29, 2008 at Monday, December 29, 2008 and is filed under , , , . You can follow any responses to this entry through the comments feed .

1 comments

Anonymous  

कश्मीरी पण्डित तो अपने देश में रिफ्यूजी हैं। उनका भला इन चुनाओं से होता नहीं लगता। उन्हें तो राजनीति और डेमोक्रेसी ने शिकार बनाया है।

December 30, 2008 at 7:46:00 PM GMT+5:30

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