पिछले साल की बात है हम रिमोट लेकर चैनेल बदल रहे थे अचानक एकसमाचार चैनेल पर ओलंपिक में जा रहे भारतीय खिलाड़ियों का साक्षात्कार देखकर रुक गए । उस समय भारतीय मुक्केबाजों का साक्षात्कार आ रहा था औरस्क्रीन पर थे अखिल कुमार। हमें मुक्केबाजी के बारे में बस इतना ही पता थाकि एक बार भारतीय मुक्केबाज डिन्को सिंह ने एशियाड में स्वर्ण पदक जीताथा, सिडनी में एक भारतीय मुक्केबाज पदक की दौड़ तक पहुँचते पहुँचते रहगया था और क्यूबा के मुक्केबाज विश्व में सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं।
"आप रजत पदक जीतते नही हैं स्वर्ण पदक हारते हैं। "
अखिल कुमार ने कहा और तभी हमें पता चल गया कि मुक्केबाजी के बारे में कुछ और जानना होगा क्योंकि भारतीय मुक्केबाज आने वाले समय में विश्व स्तर पर अच्छा प्रदर्शन करने कि क्षमता रखते हैं।
हम खेल भावना से खेल देखने वाले दर्शकों में से नही हैं। कुछ एक खेलों छोड़ कर वही खेल देखना पसंद करते हैंजहाँ भारतीय खिलाडी अच्छा प्रदर्शन कर रहे होते हैं। कई सालों तक हमें लिएंडर पेस बहुत पसंद रहे थे क्योंकि हमेंउनमें कमाल का जुझारूपन आता है । डेविस कप में लिएंडर और गोरान इवानसेविच के बीच दिल्ली में हुआ वोमैच भुलाए नही भूलता जब 0-2 से पिछडे लिएंडर ने कमाल की वापसी की और घरेलु दर्शकों की हूटिंग को अपनेलिए प्रेरणा का श्रोत बनाते हुए गोरान को हरा दिया। लिएंडर में वो जुझारू पन था जो मैच देख रहे दर्शक को उत्साहसे भर देता था।
जब पिछले साल हमने अखिल की बात सुनी तो हमें वो भारतीय खेलों के नए जुझारू चेहरे के रूपमें नजर आए।ओलंपिक के दौरान भारतीय मुक्केबाज सिर्फ़ एक कांस्य ही जीत सके और अखिल तो सेमी फाइनल भी नही पहुंचेपर अखिल का खेल शानदार रहा और भारतीय मुक्केबाजों ने आने वाले समय के लिए उम्मीद जगाई।
ओलम्पिक्स में दू सरा शानदार प्रदर्शन हमें साइना नेहवाल का लगा जिसने पदक तो नही जीता पर उम्मीदें जरूरजगा दीं। इसमें कोई शक नही कि अगर वो खेल पर ध्यान देती रहीं तो वो विश्वमें सर्वश्रेष्ठ बनने की कूव्वत रखती हैं।
हमेशा की तरह साल भर क्रिकेट को मिलने वाली वरीयता की चर्चा रही और कईअन्य खेलों के खिलाड़ियों ने इस पर बोला भी। हमें लगता है कि अगर भारतीयक्रिकेट बोर्ड अपने खेल की बेहतर मार्केटिंग के जरिये ज्यादा पैसा कमा रहा हैतो इससे दूसरे खेल संघों को जलने की जगह सीख लेनी चाहिए। आज भारतीयक्रिकेट संघ विश्व क्रिकेट में सबसे संघ माना जाता है । इस मायने में हमेंभारतीय क्रिकेट संघ का अनुसरण करना चाहिए कि कैसे उसने भारतीय बाजारकी ताकत को भुनाया है।क्रिकेट से ज्यादा लोकप्रियता फुटबोंल, होंकी , टेनिस जैसे खेल कमा सकते हैं और पैसाभी। पर जब तक इन खेलों के खिलाडी विश्वस्तर पर श्रेष्ठतम खिलाड़ियों में शामिल नही होते तब तक लोगों कीरूचि जागना सम्भव नही है। आज गिनती के खिलाडी हैं अन्य खेलों में जो विश्वस्तर पर श्रेष्ठतम में शामिल होते हैं, और आनंद जैसे जो हैं उन्हें क्रिकेटर्स सा सम्मान भी मिलता है । आनंद की लोकप्रियता उतनी नही है शायद परइसका कारण दर्शकों का जुडाव शतरंज में हो न पाना है।
क्रिकेट देश के खेल प्रेमियों को जीत का उत्साह देता है। जहाँ अन्य कई खेलों में हम कहीं नजर नही आते वहाँक्रिकेट में हम सबसे ऊपर के देशों में नजर आते हैं। इसलिए लोगों में क्रिकेट का क्रेज स्वाभाविक है।
उम्मीद करते हैं की आने वाले समय में भारतीय खिलाड़ी जीतों में निरंतरता के साथ क्रिकेट को लोकप्रियता मेंरचनात्मक टक्कर देंगे और अन्य खेल संघ भारतीय क्रिकेट बोर्ड की तरह प्रभावशाली भुमिका अदा करने कीकोशिश करेंगे ।
कसमसाहट सी कभी
उबलते हुए सवालों में,
आकुल रहती थीं ऊर्जाएं
उफनकर बह निकलने को
दहकती आग सी होती थी
हर सख्त-ओ-नर्म कोनों में
सुना भर है हमने ।
नही उठते हैं सर अब तो
बढ़ते नही हैं आगे
तरेरकर आँखें
सुलगते हुए सवाल।
आग तो बहुत दूर
अब तो महसूस नही होती गर्मी तक
कहीं आस पास ।
इससे पहले कि बहता हुआ लहू
जम जाए शिराओं में ही
पिघलानी होगी बर्फ
जो जम चुकी है
हमारे चारो ओर ।
पिछले कुछ दिनों से कतिपय कारणों से इन्टरनेट से कुछ दूरी रही और 12 दिसम्बर की पोस्ट के बाद कुछ लिखनेका समय नही मिल सका । इस बीच इस ब्लॉग पर रुपाली ने सचिन के बारे में लिखा । सचिन हमारे भी पसंदीदाखिलाड़ी हैं। हमें तो ये लगता है कि उनकी लोकप्रियता क्रिकेट की सीमाओं से बढ़ कर है। इस मामले पर रुपाली नेऔर उनके पोस्ट पर प्रतिक्रिया देने वालों ने पहले ही काफ़ी कुछ लिख रखा हुआ है। रुपाली की इस बात से सहमतहुआ जा सकता है कि सचिन की सबसे खूबसूरत पारी अभी आनी बाकी है।
रुपाली ने उस पोस्ट में राजनीतिज्ञों की विश्वसनीयता के बारे में लिखा था जिसे लोगों ने बहुत नोटिस नही किया।उन्ही की तरह तमाम लोग होंगे जो ये मानते हैं कि नेताओं को लोगों में अपने प्रति भरोसा जगाने के लिए कुछकरना चाहिए। जैसे सचिन करते रहते हैं । भरोसा जगाने की बात पर हमें एक प्रसंग याद आता है जो हमने कहींपढा हुआ था ।
बात नेहरू जी की है। 1946 के चुनावों में वो कांग्रेस के प्रमुख प्रचारक थे । अपने अभियान के दौरान एक बार वोकहीं जा रहे थे । गर्मी के दिन थे और जैसा होता है चिलचिलाती हुई धूप थी । एक जगह पर एक किसान सड़क केकिनारे एक तख्त रख कर बैठा मिला । गाड़ी रोक कर पूछने पर पता चला कि वो नेहरू जी का ही इंतज़ार कर रहाथा । उसने नेहरू जी के सामने दूध से भरा हुआ बड़ा सा गिलास पेश किया तो नेहरू जी थोड़ा सा हडबडा से गए।
ये दूध पीने के लिए सही समय नही है उन्होंने कहा तो किसान ने सवाल उछाल दिया कि अगर दोपहरी में एकगिलास दूध नही पी सकोगे तो देश कैसे चलाओगे । बात तार्किक नही थी पर उस एक किसान की आस्था की बातथी। नेहरू जी ने एक साँस में दूध ख़त्म कर दिया और पूछा कि अब संतुष्ट हो? किसान संतुष्ट था।
नेतृत्व की सफलता तभी है जब वो लोगों में भरोसा जगह सके , भरोसे को बनाए रख सके और समय समय परउठते प्रश्नों का जवाब दे सके । दुर्भाग्य से अभी ऐसा नजर नही आता।
लोगों की भावनाओं को न समझ पाने की भूल जम्मू और कश्मीर में अलगाववादी भी कर रहे हैं। घाटी के चुनावों मेंलोगों की भागीदारी ने ये साफ़ कर दिया कि जनतांत्रिक प्रक्रियाओं में भागीदारी उनकी भी प्राथमिकता है। पूरेचुनाव भर हम जैसे देश के हमारे कोने किसी लोग बस यही जानना चाहते रहे थे कि चुनाव में मतदान प्रतिशतक्या रहा है। हर बढती हुई भागीदारी की ख़बर एक संदेश जैसी है कि अलगाववादी बातों के अलावा और भी कुछ हैजिनसे आम कश्मीरी का ध्यान बटाने की कोशिश अलगाववादी करते रहे हैं. निश्चित तौर पर जबरदस्ती येमतदान नही कराया जा सकता था.
कल नतीजे आए , उसमे जो भी हो हम जैसों के नतीजे तो मतदान के प्रतिशत ही थे .
अब जिम्मेदारी बनती है नई सरकार की .
कश्मीरी पंडित अपने घरों से दूर कैम्पों में जिंदगी गुजार रहे हैं उनकी सुध लेना नई सरकार की प्राथमिकताओं में सबसे ऊपर होना चाहिए. कश्मीरियों को (विस्थापित पंडितों सहित ) जिंदगी को सवारने और ऊंची छलाँग भरने के मौके उपलब्ध कराने होंगे.
.
इन चुनावों से एक संदेश ये भी जाता है कि अरिंदम चौधरी या अरुंधती रायों की सोच के उलट कश्मीर सकारात्मक ढंग से सोचने के लिए तैयार है. जो कश्मीरी नेता इसे नही समझ पायेंगे वो धरा से अलग हो जायेंगे . अलगाव वादियों को चाहिए कि एक अस्थिर पकिस्तान के और उसकी दोस्ती के सपने छोड़ दें क्योंकि वो तो बंगालियों का भी नही हुआ है. देखें कि भारत में उनके लिए क्या है .
कश्मीरी जनता तो आगे बढ़ना चाहती है
सबसे खूबसूरत वो पारी है
आज इस ब्लॉग का एक साल पूरा हो रहा है। ऐसा शास्त्रीय विधान है कि इसबात को रेखांकित किया जाय तो हमने भी सोचा कि विधान का पालन करें ही।
ब्लॉग लिखना हमने 2002 में ही शुरू कर दिया था और काफ़ी दिनों तक अंग्रेजीके चक्कर में ही पड़े रहे । इस बीच हमने ब्लॉगर, वर्ड प्रेस, सुलेखा , रेडिफ आईलैंड, वेट पेंट्स और ब्लॉग डॉट को डॉट यु के आदि ब्लोगिंग साइट्स कोआजमाया। 2003 में हिन्दी में भी लिखा पर उस समय अधिकतर जगहविंडोस 98 होता था जिसमे हिन्दी देखने के लिए बड़ी परेशानी उठानी पड़ती थी। होता ये था कि पहले हिन्दी मेंलिखो और फ़िर दोस्तों को बताओ कि फलां सोफ्टवेयर इंस्टाल कर लो तब तुम पढ़ पाओगे। हमें किस्मत के मारेअंग्रेजी में ही लिखते रहे और चिढ़ते रहे (यहाँ अंग्रेजी का अनादर करने जैसी बात नही है अंग्रेजी भी हमें पसंद है परअपनी भाषा तो अपनी ही होती है न )।
इस बीच दुनिया बहुत तेजी से बदल रही थी और हमें पता भी नही चल पाया। 2007 की शुरुआत में एक दिन उन्मुक्त जी ने हमारे एक ब्लॉग पर टिप्पणी की कि हिन्दी में क्यों नही लिखते । इस टिप्पणी को आलस्य के चलतेहमें देख नही पाये और जब देखा तो उनका पीछा करते हुए उनके ब्लॉग पर पहुंचे तो हमें ख़ुद पर बड़ी गुस्सा आईकि हमने हिन्दी में लिखने के लिए कभी कुछ खोजने की कोशिश क्यों नही की। पर इसके बाद भी नया ब्लॉग सिर्फ़हिन्दी में बनाने में काफ़ी समय लग गया । अंत में दिसम्बर 2007 में हमने इस ब्लॉग की शुरुआत सिर्फ़ और सिर्फ़हिन्दी में लिखने के लिए की ।
इस ब्लॉग पर हमारे साथ तीन और लोग लिखते हैं। इसमे से निशा घुमंतू प्राणियों के समूह की सदस्या हैं औरउनकी रूचि राजनीति पर लिखने में है । वैसे वो अक्सर कविता में भी हाथ आजमाने की कोशिश करती रहती हैं।रुपाली हमारी ही तरह अवध (फैजाबाद और लखनऊ ) से जुड़ी हुई हैं । उनकी रूचि इतिहास और अन्य सामाजिकमुद्दों में है. रेवा सामाजिक मुद्दों और साहित्य में विशद रूचि रखती हैं और अपने ब्लॉग पर कई विचारोत्तेजक मुद्दोंपर चर्चा करती और करवाती रहती हैं।
हिन्दी ब्लॉग जगत से हमारा सक्रिय जुडाव बस कुछ ही महीनों पुराना है और कई अच्छे ब्लोग्स पर जाने कासौभाग्य अभी हमें नही मिल पाया है। ब्लोगिंग यूँ तो हमेशा से हमारे लिए सीखने की प्रक्रिया रही है पर जहाँ पहलेये सीखना अधिकतर तकनीकि से संबंधित रहा है वहीं हिन्दी ब्लॉग जगत से जुड़ने के बाद इसमे नए आयाम जुड़तेगए। जोग लिखी , एक जिद्दी धुन , कुछ ख़ास हस्तियां , समाजवादी जन परिषद् , कबाड़खाना , तीसरा खंबा , मेरेगीत , उन्मुक्त , निर्मल आनंद, मानसिक हलचल , हिन्दी वाणी और तस्लीम कुछ ऐसे ब्लॉग हैं जिन्हें जब भी समय मिले देखना अच्छा लगता है ।
कुछ ब्लॉग, कुछ ख़ास लेखन शैली और थोड़ा अलग साहित्यिक पुट के चलते ऐसे हैं जिन पर जब भी समय मिलेएक बार जाने का मन करता है। ऐसे कुछ ब्लॉग कुश की कलम , mahak, मुझे कुछ कहना है, प्रत्यक्षा , दिल कीबात और लहरें हैं।
प्रत्यक्षा जी की लेखन शैली ऐसी है कि हमेशा लगता है कि काश हम भी कुछ ऐसा लिख पाते । खैर कोशिश तो कीही जा सकती है ।
देखते हैं अगले साल तक क्या होता है पर इतना तो निश्चित है कि तब तक कई और ब्लोग्स को पढने और ढेर साड़ीचीजें समझने का मौका मिलेगा ।
इस पुराने से म्यूजियम ने हमें हिन्दी ब्लॉग जगत से जोड़ा इसलिए यह हमारे लिए तो बहुत महत्वपूर्ण है।
(ये कविता किसकी है ये हमें नही पता है पर कोई 11 साल पहले सिर्फ़ एक बार नजर से गुजारी ये कविता हमेशा याद में रहती है और जब कभी कुछ भूल जाता है तो ख़ुद ही भाव से निकल कर शब्द साथ देने को आ जाते हैं.)
जो अभी तक देखा नही गया है.
सबसे खूबसूरत वो बच्चा है
जो अभी तक पैदा नही हुआ है .
सबसे खूबसूरत वो फूल है
जो अभी तक खिला नही है.
सबसे खूबसूरत वो सुबह है
जो अभी आने वाली है.
सबसे खूबसूरत वो शब्द हैं
जो अभी कहे जाने हैं.
और सबसे खूबसूरत वो सन्देश हैं
जो अभी दिए जाने बाकी हैं .
मतदाताओं के नब्ज की समझ कर पाना वास्तव में कठिन होता जा रहा है । प्राप्त रुझान और नतीजे बताते हैं कि पाँच राज्यों के मतदाताओं में सरकार विरोधी सोच कम ही थी । तभी तो जनता ने दिल्ली , छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में निवर्तमान सरकार को दुबारा मौका दिया है जबकि राजस्थान में परिवर्तन को वोट दिया है। वस्तुतः पहली तीन सरकारें अपने काम-काज को अधिक प्रचारित कर रही थी जबकि राजस्थान में मुख्यमंत्री लगातार केन्द्र सरकार पर प्रहार करती नजर आ रहीं थी। जनता ने अपनी बात करने वालों पर ज्यादा भरोसा किया है।
दिल्ली में प्रो विजय कुमार मल्होत्रा नगर निगम चुनावों के नतीजों और मंहगाई के भरोसे दिल्ली विजय को ले कर आश्वस्त थे और उन्होंने मुख्यमंत्री जैसा व्यवहार भी करना शुरू कर दिया था । 26 नवम्बर के मुंबई हमले के बाद भाजपा नेता अन्दर ही अन्दर अधिक आश्वस्त नजर आने लग गए थे । उनकी उम्मीद अधिक मतदान से बढ़ भी गई थी।
पर मतदाताओं ने इस सोच को चकमा देते हुए शीला दीक्षित को एक बार फ़िर मौका देने का निश्चय कर लिया। चुनाव आयोग के ताजा आंकडों के अनुसार कांग्रेस 7 सीटें जीत चुकी है और 31 पर आगे चल रही है जबकि भाजपा १ जीतकर 23 पर आगे है। अन्य के खाते में अभी तक ७ सीटें हैं । ७० सीटों वाली विधानसभा में बहुमत के लिए ३६ सीटों की आवश्यकता है
मध्यप्रदेश में मतदाताओं ने कांग्रेस की अंदरूनी लड़ाई को नकारते हुए शिवराज सिंह में पुनः भरोसा जताया है । अभी तक प्राप्त रुझानों में भाजपा १२६, कांग्रेस ७७, बसपा १० और उमा भरती की लोजश ६ सीटों पर आगे है । यहाँ कुल सीटें २३० हैं इस हिसाब से भाजपा बहुमत का आंकडा पार कर चुकी है
छतीसगढ़ में भाजपा के रमन सिंह की छवि उनका साथ देते हुए नजर आ रही है। ९० सीटों वाली विधानसभा में भाजपा ४३ सीटों पर आगे चल रही है जबकि कांग्रेस २९ पर।
राज्यों के उलट राजस्थान ने परिवर्तन को चुना है। वसुंधरा राजे का आतंकवाद पर केंद्रित संदेश भी लोगों को खुश न कर सका यहाँ ९५ सितो पर बढ़त के साथ कांग्रेस बहुमत के लिए आवश्यक १०१ के करीब है । भाजपा को ७३ और बसपा को ७ सीटों पर बढ़त है।
मिजोरम में कांग्रेस को अभी तक प्राप्त २६ रुझानों में से २२ पर बढ़त है और यह बहुमत के लिए जरूरी २१ से ज्यादा है ।
ताजा नतीजे और रुझान
दिल्ली
कुल सीटें - 70
चुनाव हुए - 69
कांग्रेस - 42
भाजपा - 23
अन्य - 04
राजस्थान
कुल सीटें - 200
चुनाव हुए - 200
कांग्रेस- 96
भाजपा - 78
अन्य - 26
मध्य प्रदेश
कुल सीटें - 230
चुनाव हुए - 230
भाजपा- 136
कांग्रेस - 66
अन्य - 28
छत्तीसगढ़
कुल सीटें- 90
चुनाव हुए- 90
भाजपा- 47
कांग्रेस- 38
अन्य- 05
मिजोरम
कुल सीटें- 40
चुनाव हुए- 40
कांग्रेस- 28
एम् एन ऍफ़ - 3
अन्य- 3
एक धुंधलाती हुई शाम की यादें
Posted by roushan in 6 दिसम्बर, अयोध्या, बाबरी ढांचा, राम मन्दिर, समाज, हमारी बात
दिनांक 30 नवम्बर 1992 , फैजाबाद शहर के पास एक स्कूल के छात्रावास के बच्चों का ध्यान खींचते हैं धड़धडातेहुए उनके पास आ रहे सी आर पी ऍफ़ के ट्रक। बच्चों का खेल बंद हो जाता है और वो अपने कमरों की खिड़कियों सेचिपक जाते हैं। थोडी देर में स्कूल प्रबंधन से आधिकारिक सूचना जारी हो जाती है ।
स्कूल अनिश्चितकाल के लिए बंद और जल्दी से जल्दी छात्रावास खाली किया जाना है।
आख़िर बड़ों की लड़ाई चल रहीहो तो बच्चे पढाई कैसे करसकते हैं। उनकी कक्षाएं और छात्रावास तो सी आर पी ऍफ़के अस्थायी कैम्प बनेंगे ।राहत की बात इतनी है किकैम्प अस्थाई होंगे।
उन बच्चों में एक बारह साल का बच्चा था । अपने सभी साथियों कीतरह वह भी खेल रहा था , अपने सभी साथियों की तरह वह भी खुशथा कि घर जाने का मौका मिल रहा है । लेकिन साथ ही साथ उसकादिल एक अनजाने डर से भरा जा रहा था।
30 नवम्बर 1992 की उस शाम वह महसूस कर सकता था कि सीआर पी ऍफ़ के ट्रक जो धूल उड़ाते हैं वो एक घुटन सी पैदा करती है। वह महसूस कर सकता था कि जब ठीक ठाकचल रहे समाज में आपात प्रबंधनों की नौबत आए तो यह खतरनाक होता है.
पिछले कुछ दिनों से प्रदेश के मुख्यमंत्री के , देश के प्रधान मंत्री के और ढेर सारे नेताओं के लगातार बयान आ रहे थेकि सबकुछ शांतिपूर्ण निपट जायेगा और सभी के साथ उसे भी भरोसा था पर राजनीति में रूचि रखने वाला वहबारह साल का बच्चा उन सी आर पी ऍफ़ के ट्रकों से असहज हो चला था।
वह एक अजीब सा दौर था ।
दरकती आस्थाओं का दौर
टूटते मिथकों का दौर
निस्तेज जो रहे नायकों का दौर
विभाजनों का दौर
अभी थोड़े ही दिन पहले एकाएक आदर्शवादी युवा सुनील कुमारों के नाम के आगे सिंह, त्रिपाठी , यादव और वर्माजुड़ गए थे ।
अभी कुछ दिन पहले जाति के विभाजनो की आग में युवाओं ने ख़ुद को, अपने सपनो को और उसके साथ समाजको झोंका था।
ये एक टूटन थी
अभी कुछ दिन पहले एक युवा नायक, जो देश को इक्कीसवीं सदी में ले जाने के सपने देख और दिखा रहा था, नेपिछले दिनों की रूढियों के सामने घुटने टेके थे ।
अभी कुछ दिन पहले एक मिस्टर क्लीन अचानक से बदरंग हो उठा था
अभी कुछ दिन पहले एक दिलों पर राज कर रहा सुपर स्टार अचानक नजर से गिर गया था
ये आदर्शों और नायकों का पतन था
ये दूसरी टूटन थी।
अभी कुछ दिन पहले समाज के सामने अर्थव्यवस्था का नया संकट आ पड़ा था । पुरानी आस्थाएं , सोचें, तौर-तरीके छोड़ कर पूरी अर्थव्यवस्था एक परिवर्तन के दौर से गुजर रही थी । एक परिवर्तन का दौर जब हर तरफ़आशंकाएं होती हैं जब हर तरफ़ आने वाली परिस्थियों को लेकर भय होता है ।
ये एक और टूटन थी
इन दरकती हुई आस्थाओं के दौर में जब कुछ भी पहले जैसा नही दिख रहा था ट्रकों से उड़ी धूल पूरे वातावरण कोएक घुटन से भर दे रही थी , उस बच्चे ने महसूस किया कि वो न जाने कहाँ आ गया है। उसने महसूस किया कि वोकुछ नही समझ पा रहा है ।
आज सोलह साल और बीत चुके हैं । उस ३० नवम्बर 1992 की धुंधलाती शाम और उसके बाद आने दिनों ने बहुतकुछ बदल कर रख दिया ।
आज 6 दिसम्बर 2008 को जब मुंबई हमलों के चलते विहिप शौर्य दिवस और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटीकाला दिवस नही माना रही है तो एक 28 साल का युवा ये जानने का बहुत इच्छुक है कि क्या हम उन दिनों कोपीछे छोड़ कर आगे नही बढ़ सकते? आज जब हम एकता का प्रदर्शन कर रहे हैं तो क्या इसी एकता को आगे नहीबढ़ाते रख सकते? क्या रखा है एक विवाद को यूँ ही आगे बढाते जाने में
अतीत का बोझ सबके लिए परेशानी बन रहा है तो क्यों न उसे उतार फेंके और कदम से कदम मिला कर चल पड़ेंएक नए भविष्य की ओर
क्या ऐसा हो पायेगा?
अंतर्राष्ट्रीय राजनीति (छोटी सी बात )
Posted by roushan in अंतर्राष्ट्रीय, छोटी सी बात, नैतिकता, राजनिति
अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में नैतिकता का कोई मोल नही होता।
हमें यह सब इसलिए लिखना पड़ रहा है क्योंकि कल हमें मजबूरन दो टिप्पणियां मिटानी पड़ीं।
हमारा शुरू से मत रहा है कि सभी को, चाहे वो जो भी बात कह रहा हो अपनी बात कहने का पूरा हक़ है और उनबातों को सुना भी जाना चाहिए । कोई इतना भी सही क्यों न हो उसे दूसरों को बिना पढ़े, सुने और तर्क किए ग़लतठहराने का हक़ नही मिलता है।
ब्लॉग लिखने का फायदा ही क्या अगर आप दूसरों की बात नही सुन सकते।
इसी भावना को ध्यान में रख कर हमने कभी भी कमेन्ट मोडरेशन का विकल्प नही पसंद किया।
वस्तुतः हमारे जैसे समाज में, जहाँ तमाम तरह की सोच और विचारधाराओं वाले लोग रहते हैं , वार्तालाप कीप्रक्रियाएं हमेशा चलती रहनी चाहिए। इससे न सिर्फ़ समझ बढती है बल्कि लोगों को करीब आने का मौका मिलताहै। हिन्दुस्तान की जिन बातों पर हमें हमेशा से नाज रहा है उनमे लगातार चलने वाली वैचारिक आदान-प्रदान कीप्रक्रिया भी शामिल रही है।
हमारा मानना है कि वैचारिक बहसों में एक दुसरे के विचारों के विरोध में और अपने विचारों को रखते हुए हर कोईबिना शिष्टता की सीमा लांघे आक्रामक हो सकता है और उसे होना भी चाहिए।
पर बहस में विवेक खो देना और अशिष्ट टिप्पणियां देना बिल्कुल ही अनुचित है। अशिष्ट टिप्पणियां न केवलआपकी व्यक्तिगत कमजोरी का प्रदर्शन करती हैं बल्कि आपकी विचारधारा को भी कमजोर रूप में प्रदर्शित करतीहैं। इस प्रकार की टिप्पणियों से वो लोग जो आपकी बात सुनने को तैयार रहते हैं , आपके और आपकी विचारधाराके प्रति एक नकारात्मक पूर्वधारणा बना लेते हैं।
कल हमने अपने ब्लॉग से दो ऐसी टिप्पणियां मिटायीं जो हमारे लिहाज से शिष्ट और सभ्य वार्तालाप में कभी नहीआनी चाहिए ।
आपसे हमारा यही निवेदन है कि अपनी बात प्रभावशाली ढंग से रखें और अशिष्टता से बचें।
मुंबई हमलों के पीछे कौन है मोसाद या अमरीका?
Posted by roushan in आतंक, देश-दुनिया, पुलिस, मुंबई, शहीद, हमारी बात
एक जानने वाले के साथ बैठने का मौका मिला । वो भाई साहब एक वामपंथी संगठन से जुड़े हुए हैं। मुंबई हमले की चर्चा होने लगी।
-"रौशन भाई ये मोसाद का काम है" उन्होंने फ़रमाया
इन वामपंथियों की कुछ बातें हमें हमेशा से समझ में नही आती रही हैं ये हमेशा दूर की ही सोचते हैं नजदीक दिख रही चीजों पर गौर ही नही करते।
-पर सबूतों का इशारा तो पकिस्तान की खुफिया एजेंसी की तरफ़ जाता दिख रहा है
हमने प्रतिकार करने की कोशिश की।
- आप नही जानते मोसाद को ये कुछ भी करा सकती है।
उन्होंने हमें बताया
-लेकिन मेरे भाई एक आतंकी पकड़ा भी गया है पता चल रहा है कि उसने कुछ चीजें ऐसी बताई भी हैं जिससे लश्कर और ऐसे ही संगठनो की बात सामने आई है।
- ये कांग्रेस सरकार नाकारा है
हमने उनकी इस सूचना को ग्रहण किया और पूछा
-अगर ये मोसाद का काम था तो उसने नरीमन हॉउस पर हमला क्यों बोला ? यहूदियों को क्यों मारा ?
- सहानुभूति बटोरने के लिए रौशन भाई जिससे वो अरबों के ख़िलाफ़ कार्यवाही जारी रख सके
हम उनके कुतर्कों से बोर हो गए थे।
-अगर उन्हें अरबो के ख़िलाफ़ कार्यवाही ही जारी रखनी थी तो वहीँ जारी रख सकते थे। वैसे भी मोसाद सहानुभूति के चक्कर में नही पड़ती वो जो मन आता है करती जाती है नृशंसता से ।
- इसमे मोसाद और सी आई ए की मिलीभगत है
उन्होंने जाते जाते कहा ।
एक भाई से बात हुई वो दक्षिणपंथी थे ।
- ये हिन्दुओं पर अत्याचार का बदला है तभी तो करकरे मारा गया ।
-लेकिन हिन्दुओं का बदला लश्कर क्यों ले रहा है? क्या कोई ताजा समझौता हुआ है ?
- रौशन जी आप कैसी बातें करते हैं उनके साथ हमारा समझौता क्यों होगा?
- तो आप क्यों कह रहे हैं ये हिन्दुओं पर अत्याचार का बदला है? वैसे करकरे पर हमला नही हुआ मुंबई पर हमला हुआ है और करकरे वहां अपनी ड्यूटी करे गए थे उनका सीधे फ्रंट पर जाना जरूरी नही था। और अकेले करकरे की मौत नही हुई है आंकडा दो सौ के पार हो गया है वो सब तो हिन्दुओं के विरोधी नही थे?
वो थोडी देर और बातें करते रहे फ़िर थोडी देर बाद उनके मुह से निकला
- ये हमारे संतो का तेज है
हम भी बोर हो गए।
एक भाई को हमने बताया कि ऐसी रिपोर्ट आ रही है कि आतंकी गुजरात के पोरबंदर से बोट से आए थे वो लगे केन्द्र सरकार और मीडिया को गाली देने बोले ये मोदी को फंसाने की साजिश है वो गुजरात से कैसे आ सकते हैं । ये झूठ है
हमने उन्हें शांत किया कि समुद्री रास्तों कि जिम्मेदारी राज्य सरकार की नहीं केन्द्र सरकार की होती है।
अब वो थोड़ा रिलैक्स हुए और जब पाया कि मोदी और गुजरात सरकार सकुशल है तो लगे हाथ पकिस्तान को गाली देना शुरू किया ।
एक कांग्रेसी से बात हुई । वो भी नाराज थे । हमने उन्हें बताया कि गृह मंत्री ने कहा है कि ऐसी छोटी छोटी घटनाएं होती रहती हैं।
- नही यार माना वो नाकारा हैं लेकिन ऐसा बयान कैसे दे दिया । ये मीडिया की बनाई बात है । वो मीडिया पर बरसते रहे और शिवराज पाटिल को गाली देते रहे कांग्रेस को नीचा दिखने के लिए।
हमने उन्हें बताया कि ये महारास्ट्र के गृह मंत्री का बयान है देश के नही।
वो भी रिलैक्स हो गए। वो शरद पवार का चमचा और कह ही किया सकता है उसे हटा देना चाहिए ।
वो उदास ही रहे
- इस चक्कर में विधान सभा चुनावों में हमें परेशानी आ गई । कितना अच्छा जा रहा था । भाजपा का चरित्र देखिये ऐसे मुद्दे का भी राजनैतिक फायदा उठा रहे हैं।
- अब आप कमी रखोगे तो विपक्ष फायदा क्यों न उठाये । इसमे ग़लत क्या है उन्हें मुद्दा मिला है।
- फ़िर भी यार कुछ तो लिहाज करना चाहिए। मुझे तो शक है .....
हम फ़िर बोर हो गए थे । चल पड़े।
चलते- चलते:- दिनभर लोगों के पास मेल्स आते रहते हैं । हम ९ सालों से इन्टरनेट इस्तेमाल कर रहे हैं तमाम मेल पढने को मिलते हैं । भाई लोग करते क्या हैं कि वो मेल आगे अपने मित्रों के पास भेज देते हैं बिना सत्यता जांचने की कोशिश किए। अब भाई लोग उसे अपने ब्लॉग पर भी डालने लगे हैं। कुछ भाई तो जनहित में हिन्दी में अनुवाद काके देशसेवा करते हैं। पर बिना तथ्य जाने । मजे की बात तो ये है की हमारी हिन्दी के बड़े बड़े नामों वाले और अपने ब्लॉग से बुद्धिमान दिखने वाले ब्लॉगर बंधुओं की भी आँखें ऐसे ब्लॉग पोस्ट पढ़ कर खुल जाती हैं और उस ब्लॉग पर शुक्रिया अदा कर देते हैं कि आपने अच्छी जानकारी दी । पता नही ये इतने बड़े ब्लॉगर उस पोस्ट को पढ़ते भी हैं या नही और पढ़ते हैं तो क्या पढ़ते हैं. हमें जब ऐसे जानकारी से भरे मेल और ब्लॉग पाये हैं हरबार सच जानने की कोशिश की और हर बार पाया कि वो झूठ थे । खैर ...
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- टिप्पणियों में संयत भाषा का प्रयोग करें
- मुंबई हमलों के पीछे कौन है मोसाद या अमरीका?
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December
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