खामोशियाँ!  

Posted by roushan in

खामोशियाँ!
कुछ कह जातीं हैं हमेशा
जानते थे हम
इसलिए उस दिन अचानक
जब वो मिला
तो बोलते रहे हम
दुनिया भर की बातें,
बेकार की बातें।


वो ख़ामोश रहा
बस सुनता रहा
और फिर चला गया
बिना कुछ कहे
बस ख़ामोशी ओढ़ कर।


और तब हमने जाना
कि ख़ामोशी सचमुच बोलती है।
भीतर तक छील गयीं
कई पुराने छुपे हुए से ज़ख़्म
फिर से खोल गयी
बचते रहे जिन बातों से हमेशा हम
उसकी ख़ामोशी
वो सबकुछ बोल गयी।

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This entry was posted on Jan 19, 2009 at Monday, January 19, 2009 and is filed under . You can follow any responses to this entry through the comments feed .

15 comments

Anonymous  

बहुत खूबसूरत ब्लॉग और उतनी ही सुंदर रचना...जैसे सोने पर सुहागा...बहुत ही अच्छा लगा यहाँ आ कर और आपकी खामोशी वाली रचना पढ़ कर...वाह...
नीरज

January 19, 2009 at 10:54:00 PM GMT+5:30
Anonymous  

बहुत ख़ूब !

January 19, 2009 at 11:10:00 PM GMT+5:30
Anonymous  

बहुत कुछ कहती कविता
बोलती है खामोशी।

January 19, 2009 at 11:12:00 PM GMT+5:30
Anonymous  

बहुत बेहतरीन!!

January 20, 2009 at 9:01:00 AM GMT+5:30
Anonymous  

बहुत अच्छी कविता...
खामोशी नियामत है...
बेशकीमती है खामोशी...
क्योंकि तब बुने जाते हैं
अनमोल शब्द...
खामोशी जितनी घनी होगी...
उतने ही गहरे होंगे
शब्दों के अर्थ भी...

January 20, 2009 at 2:07:00 PM GMT+5:30
Anonymous  

bahut achchhe

January 20, 2009 at 2:23:00 PM GMT+5:30
Anonymous  

और तब हमने जाना
कि ख़ामोशी सचमुच बोलती है।
---------
निश्चय ही, बोलने से ज्यादा बोलती है।
--- एक खामोशी है, सुनती है कहा करती है।

कविता मेरे मन की लिखी आपने।

January 20, 2009 at 7:28:00 PM GMT+5:30
Anonymous  

sach bahut gehri baat kahi sundar.

January 20, 2009 at 8:01:00 PM GMT+5:30
Anonymous  

और तब हमने जाना
कि ख़ामोशी सचमुच बोलती है।
भीतर तक छील गयीं
कई पुराने छुपे हुए से ज़ख़्म
फिर से खोल गयी।


भावपूर्ण कविता, हार्दिक बधाई।

January 21, 2009 at 4:27:00 PM GMT+5:30
Anonymous  

बहुत सुन्दर!
घुघूती बासूती

January 21, 2009 at 6:51:00 PM GMT+5:30
Anonymous  

sachmuch khaamoshi bolti hai..

January 22, 2009 at 1:39:00 AM GMT+5:30
Anonymous  

बचते रहे जिन बातों से हमेशा हम
उसकी ख़ामोशी
वो सबकुछ बोल गयी।
वाह! बहुत खूब
मोनिका भट्ट (दुबे)

January 22, 2009 at 1:57:00 PM GMT+5:30
Anonymous  

bahut sundar kavita..


एक ज़माना था की खामोशियाँ हौले से कुछ कह जाती थी..
अब तो बस चीख सी सुनाई देती है।

January 22, 2009 at 8:55:00 PM GMT+5:30
Anonymous  

...................................................................

January 26, 2009 at 6:38:00 PM GMT+5:30
Anonymous  

khamoshi jyada asardaar hoti hai.

January 26, 2009 at 6:39:00 PM GMT+5:30

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