ब्लॉग बोले तो चिटठा !
ब्लॉग = चिटठा
ब्लॉगर = चिट्ठाकार
इन्टरनेट = अंतरजाल
जब भी कोई भाषा ऐसी चीज का प्रयोग करना शुरू करती है जिसकी शुरुआत किसी अन्य भाषा में हुई हो तो उसकेसामने ऐसी परिस्थिति आती है कि शब्दावली का क्या किया जाय। किसी भी भाषा ऐसे तमाम लोग होते हैं जिन्हेंमहसूस होता है कि किसी दूसरी भाषा की शब्दावली का प्रयोग करना यह मान लेना है कि हमारी भाषा उससेकमतर है। पर क्या ऐसा सच भी होता है?
उदहारण लेते हैं विश्व की सबसे लोकप्रिय भाषा अंग्रेजी से ;
अंग्रेजी में सबसे प्रमाणिक माने वाले शब्दकोष ऑक्सफोर्ड इंग्लिश डिक्शनरी में हर वर्ष अनेको शब्द जोड़े जाते हैंउनमे से अधिकतर शब्द ऐसे होते हैं जो किसी न किसी अन्य भाषा से उधार लिए गए होते हैं और अंग्रेजी बोलनेवाले अनेक लोग उनका प्रयोग कर रहे होते हैं । ऑक्सफोर्ड में जोड़े जाने के बाद उन शब्दों के प्रयोग को एकवैधानिकता सी मिल जाती है और अंग्रेजी का शब्दकोष और लोकप्रियता बढती रहती है।
फर्ज कीजिये आप अंग्रेजी में लिख रहे हैं और कहीं पर आपको पान लिखना हुआ । आप बीटल लीव्स का प्रयोग करसकते हैं पर उससे पान का सही मतलब ज़ाहिर नही हो सकता । दूसरा तरीका है कि आप पान ही लिखें । जो पानसे अपरिचित हैं उन्हें बीटल लीव्स और पान दोनों के मायने देखने होंगे कि आख़िर बीटल लीफ या पान खाने केमायने क्या हैं पर जो पान से परिचित हैं उन्हें ज्यादा समझ पान लिखने से ही आएगा।
हमारा कहने का आशय है कि कुछ शब्द ऐसे होते हैं जो अपने साथ साथ एक बड़ा सन्दर्भ साथ लेकर चलते हैं आनेजैसे ही उनका अनुवाद किया वो सन्दर्भ से कट जाते हैं और कमोबेश अर्थहीन हो जाते हैं। हमने विदेशियों से जबभी कभी बात की , इस बात का ध्यान रखा कि सन्दर्भ साथ लेकर चलने वाले शब्द अपरिवर्तित रहें उनके मायनेसमझा दिए जाय। यह श्रमसाध्य हो सकता है परन्तु एक गहरा संदेश साथ लेकर चलता है।
शब्दों को उनके मूल में ही रहने देना उर्दू में भी ख़ूब रहा है। वस्तुतः उर्दू का जन्म लश्करों में हुआ और इस भाषा नेकई भाषाओँ के शब्दों का जस के तस् प्रयोग करना जारी रखा । यही कारण है कि उर्दू जहाँ भी गई लोगों में गहरे सेपैठ गई।
यहाँ इस पूरी बहस का उद्देश्य यही रहा कि किसी ने हमसे पूछा कि यह चिट्ठा कैसा बेतुका सा नाम है पहली नजरमें तो यह नकारात्मक सा नजर आता है ।
हमें भी महसूस होता रहा है कि जब हम बस, ट्रेन, कंप्यूटर, आदि न जाने कितने शब्दों के लिए हिन्दी शब्द खोजनेऔर बनाने के चक्कर में नही पड़े तो ब्लॉग, ब्लोगर, और इन्टरनेट के लिए ऐसा करने की क्या ख़ास जरुरत है? हिन्दी बढेगी तो अपनी जीवन्तता से न कि शुद्धता के अनावश्यक आग्रह से।
हमारा मानना है कि जीवन्तता में लेन-देन का भी काफ़ी महत्त्व होता है ।
वैसे ये हमारा अपना विचार है आख़िर जो ऊपर लिखे शब्दों का प्रयोग कर रहे हैं उन्होंने भी तो कुछ सार्थक ही सोचाहोगा !