डॉक्टर अनुराग आर्य के ब्लॉग से एक शिकायत रहती है । उनके ब्लॉग का नाम तो दिल की बात है पर उनके ब्लॉग को पढने के बाद अक्सर दिमाग का इस्तेमाल करना पड़ जाता है। वैसे उनके बारे में भी एक ख़ास बात है - उन्होंने एक बार कॉफी पीते-पीते कन्फेस किया था कि एक किताब को पढने के बाद उन्हें रात भर नींद नही आई थी (ज्यादा कॉफी पीने पर नींद आती है भला?)। हमें शक है तब से वो दिन में डाक्टरी करते हैं और रात में चाँद पर रिसर्च (शायद गुलज़ार के मार्गदर्शन में ) ।
खैर उनकी रिसर्च हमारी गुफ्तगू का विषय नही है । उनके ब्लॉग पर पिछली पोस्ट ख़ुदा की उम्र को लेकर एक सवाल उठाती है। हम पोस्ट पढ़ते गए और तय करते गए कि टिप्पणी देते समय क्या क्या लिखना है अंत में पहुँचकर एक सवाल सामने आ गया
"वैसे ख़ुदा की उम्र क्या होगी तकरीबन ?"
और हम अटक गए ।
डॉक्टर साहब तो सवाल उछाल कर फ़िर से डाक्टरी और चाँद पर रिसर्च में मशगूल हो गए और हम सोचते रहे।जितना ख़ुदा ने दिमाग दिया उससे ज्यादा खर्च डाला ।
सबसे पहले तो हमें याद आई राग दरबारी की । हमारे लखनऊ से ही ताल्लुक रखते हैं श्रीलाल शुक्ल साहब , रोज आते-जाते उनका घर देखते हैं और राग दरबारी को याद करते हैं। राग दरबारी में एक जगह वो पैगम्बरों की असलियत भी ज़ाहिर करते हैं। अब पैगम्बर इतने ज्यादा हैं कि चाह कर भी हम सब के बारे में शुरुआत नही मालूम कर सकते हैं सो पैगम्बरों के सहारे ख़ुदा तक पहुँचने का ख़याल छोड़ देना पड़ा।
ख़ुदा की उम्र जानने से पहले उस तक पहुंचना जरूरी है । तो पहले वही सही !
एक आम धारणा है कि खुदा जन्नत में रहता है और जन्नत की असलियत गालिब अपने साथ लेकर जन्नत चले गए और हमें बस ये दुहराने को छोड़ गए कि
हमको मालूम है जन्नत की हकीकत फ़िर भी
दिल के खुश रखने को गालिब ये ख़याल अच्छा है।
जन्नत की हकीकत को लेकर हमें बड़ा शक बना रहता है । कुछ न कुछ उस हकीकत में ऐसा जरूर रहा होगा कि गालिब ने शराब में ख़ुद को डुबो डाला । ऐसा भी हो सकता है कि जन्नत की हकीकत में बस इतना भर रहा हो कि वहाँ शराब पीना निहायत ज़रूरी हो और गालिब दिन-ओ-रात पीने की प्रैक्टिस करते रहे हों उम्र भर।
हमें तो मरने और जन्नत(उसमे अगर शराब पीना पड़े तो ) दोनों के नाम से बहुत डर लगता है।
कुछ लोग ऐसा नही मानते कि ख़ुदा जन्नत में रहता है। गौर फ़रमाइए
जाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठकर
या वो जगह बता दे जहाँ पर खुदा न हो।
इन लाइनों से दो चीजें शीशे की तरह साफ़ हो जाती हैं । अव्वल तो ख़ुदा को बताया जाता है कि वो मस्जिद में रहता है दूजे वो मस्जिद के इतर भी कई जगहों पर देखा गया था तभी तो शायर बड़े ठसक से कह रहा है कि या वो जगह बता दे जहाँ पर ख़ुदा न हो? अब लोगबाग परेशान हो गए होंगे कि अभी इससे बोले कि तुम अमूक जगह पर जा कर पियो और क्या पता वही ख़ुदा भी मिल जाय! न जाने क्यों ये लोग ख़ुदा के पास शराब पहुँचने भी नही देना चाहते । अरे भाई उसकी मर्जी पिए न पीए आप शराबी को उसके पास बैठ कर पीने से रोक दोगे तो क्या ख़ुदा बच जायेगा? शराब जिसको पीना हो वो पी ही लेगा भले वो खुदा ही क्यों न हो।
खैर! ऐसा लगता है कि जैसे इंसान ख़ुदा को प्यारा होकर जन्नत चला जाता है वैसे ही ख़ुदा कभी जमीन की किसी चीज को प्यारा होकर जमीन पर आ गया। अब हुआ ये होगा कि पहले तो मस्जिद में किसी चीज को प्यारा हुआ होगा और उसका जमीन पर पहला ठिकाना मस्जिद रहा होगा फ़िर वो अलग अलग चीजों को प्यारा होते हुए अलग-अलग जगह पर भटकता फ़िर रहा होगा और अब किसी को पता नही है कि आख़िर ख़ुदा अब है कहाँ ।
ख़ुदा को खोजने निकलना तो हमारे बस की बात थी नही हम फ़िर से इधर-उधर देखने लगे तो दो चीजें फ़िर मिलीं
न था कुछ तो ख़ुदा था
कुछ न होता तो ख़ुदा होता।
इस बात पर यकीन करें तो ख़ुदा के होने में दो बातें हैं पहली कि जब कुछ नही था तब ख़ुदा था, दूसरी कि कुछ नही होता तो ख़ुदा होता । मतलब ये है कि अब तो बहुत कुछ है- ब्लॉग है , इन्टरनेट है कंप्यूटर है , उंगलियाँ हैं (बहुत कुछ है ) तो फ़िर अब ख़ुदा नही है? ये कैसी बात हुई कहीं और देखते हैं।
एक और लाइन है, अच्छी है-
हर ज़र्रा चमकता है अनवार-ए-इलाही से
हर साँस ये कहती है, हम हैं तो ख़ुदा भी है।
इसका मतलब ये हुआ कि अकबर इलाहाबादी साहब जब तक थे तबतक ख़ुदा था । और अब जब वो नही रहे तो ख़ुदा भी नही रहा !
ख़ुदा खैर करे ये क्या गजब है ।
हमने कहा था न कि दिल की बात पढने के बाद दिमाग का इस्तेमाल करना होता है सो हमने किया। अब शायर वगैरह जो बातें कहते हैं वो सिर्फ़ उनपर ही लागू नही होती वो सबपर लागू होती है अर्थात वो हमपर भी लागू होतीहैं॥ इसका सीधा मतलब हुआ कि जबतक हम हैं तबतक ख़ुदा है और जबसे हम हैं तबसे ख़ुदा है (उसके पहले थाया नही और होगा या नही हमसे क्या मतलब )
तो ख़ुदा की उम्र जोड़ते हैं, 1980 से 2008 - अट्ठाईस साल फ़िर एक अप्रैल, 2008 से एक जनवरी, 2009 - नौमहीने और 1 जनवरी से 11 जनवरी- 10 दिन ।
आज दिनांक 11 जनवरी 2009 को ख़ुदा की उम्र अट्ठाईस साल 9 महीने और 10 दिन है । एक अप्रैल को वो 29 साल का हो जायेगा।
जिन साहेबान को कोई ओब्जेक्शन हो वो अकबर इलाहाबादी साहब से संपर्क करें जिन्हें ख़ुदा को गिफ्ट-विफ्ट देना हो वो हमसे ।
19 comments
रौशन जी गौर करे " जाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठकर
या वो जगह बता दे जहाँ पर खुदा न हो।"
शेर पुराना है तबका है जब महंगाई नही थी इत्ती अब आज के जमाने का शेर पेश है
" जाहिद कभी ना पीना मस्जिद में बैठकर
बोतल एक ही है कही खुदा न मांग ले ।"
उम्मीद है ध्यान रखेगे
waise jannat me ab shahrukh khaan rahte hain khuda bechara kahin bhatak raha hoga
kaahe ko aisan baat likhte hain? kal ko aap pe phatwa jari ho jaye to mat kahiyega ki hamne nahi bataya.. :)
आपको पता है ना की खुदा को मजाक पसंद नही है? आगे से मजाक करना हो तो भगवान् से कीजियेगा..
जरा अकबर इलाहाबादी से हमारा अपॊयंटमेंट फ़िक्स कर दें। ताकि आपकी इस ‘विट’की चर्चा भी उनके श्रीमुख से करवाई जा सके। वैसे वे जन्नत... में खुदा को गिफ़्ट दे चुके होंगे।
इस विषय पर बात करना इस हिंदुस्तान में मना है.
............खतरे में पड़ जाएगा,
Anurag ji ke dil ki baat sunanae ke baad se mera bhi dimag pareshan tha..achchha hua jo samasya hal kar di
आप डा॓. साहब की बात कर रहे थे कुश भाई पर आज तो आपके यहाँ भी दिमाग का इस्तेमाल करना पड़ा. क्या ही अन्दाज़ था बात को पेश करने का ! अहा !
शानदार प्रस्तुति
अब शुएब को चेत जाना चाहिए खुदा से उनका पेटेंट खतरे में है
सोचता हूँ सच लिखूं
या अदब की बात लिखूं
भीगे से है जज्बात
कोई गरम बात लिखूं
झूठ को पहनाकर हसीं लिबास
उसे फ़िर महताब लिखूं ......
वो कहते है ना दोस्त....की उम्र बढती गयी ज्यूँ ज्यूँ मेरे .खुदा की सूरते बदलती गयी...तो सबने अपने अपने खुदा बाँट लिए है....पर कई बार आलिशान मस्जिदों ,मंदिरों को देखकर कभी कभी पूछने के मन करता है....की हिसाब मे कुछ गडबडी है कही ?
वैसे आपका गणित जोरदार है अपुन तो कमजोर है बीडू !
उम्र जानकर यह पता लगा कि हमसे बहुत छोटे हैं। अब क्या खुदा को आशीर्वाद देना होगा?
घुघूती बासूती
ek or khuda mila lgbhg 25 saal ka,blki mili!bus party valo se bechna hoga nhi to ya to joote marenge ya naariyal fodenge.arre khuda ka hum me rhna mna jo hai.
एक खुदा नहीं मिलता तो इतना मातम क्या..
मुझे ख़ुद अपने कदम का निशाँ नहीं मिलता| :)
1st April...means Murkhadhiraj...ab tum kitno ko bewkoof banaoge?
Waise yaad rakhna ek nukta ke her fer se khuda juda ho jata hai:-)
अहा...बढ़िया पोस्ट है रोशन जी। एक और खुदा की तरफ से बधाई स्वीकारें। लेकिन सवाल ये है कि जो खुदा एक अप्रेल को पैदा हुआ... वो दिल की बात में दिमाग कहां से लगा पाता है...खैर एक बात आपकी ये भी थी कि खुदा ने जितना दिमाग दिया था उससे ज्यादा खर्च कर डाला...(लेकिन कौनसे खुदा ने दिया था) कोई बात नहीं ये भंडार तो ज्यों खर्चे त्यों त्यों बढ़े हैं ना....वाकई बढ़िया पोस्ट रही।
तरु जी लगता है एक अप्रैल वाली बात ध्यान में रखकर ही "खुदा ने जितना दिमाग़ दिया था ...." लिख डाला था .
जो खुदा एक अप्रैल को जन्मेगा वो बेचारा दिमाग़ की बातें कहाँ समझेगा वो तो इधर उधर की ही बातें करेगा जैसे दिल की .... क्यों रौशन?
जनाब रौशन जी आपने लिखा है --
"जाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठकर
या वो जगह बता दे जहाँ पर खुदा न हो।"
तो फ़िर सुनिए --
शराब पी ले काफिर के दिल में बैठ कर
ये वो जगह है, जहाँ खुदा नही