शहीद नरकगामी नही होते !  

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आज सुबह से मुंबई पर हमले की ख़बर देख देख कर वैसे ही बुरा महसूस हो रहा था हमने सोचा कि थोड़ाइन्टरनेट पर भी चीजें देख ली जाएँ। हिन्दी ब्लोग्स पर लोगों का इस घटना पर क्षोभ नजर रहा था। पर एकचीज देख कर दिल और दुखी हो आया


जहाँ एक ओर देश के राजनीतिज्ञों ने इस मामले पर एकजुटता कि वकालत कीहै वहीँ इस मामले पर कुछब्लोगर्स की प्रतिक्रिया कष्ट देने वाली रही। ऐसी प्रतिक्रियाओं को देख कर मन यही पूछता है कि ऐसेबंटवारे वाले समाज के लिए कहाँ सम्भव है आतंकवाद से लड़
पाना।


एक साहब सुबह से घूम घूम कर हर ब्लॉग पर जहाँ मुंबई पर हमलों की चर्चा की गई है वहां एक टिप्पणी डाले जा रहें हैं उस टिप्पणी के कुछ अंश तो देखिये


"बस गलती से किरेकिरे साहब वहा भी दो चार हिंदू आतंकवादी पकडने के जोश मे चले गये , और सच मे नरक गामी हो गये"


क्या कहें इस सोच के मालिकों को ?


इन साहब को हेमंत करकरे की अगुवाई वाली टी एस द्वारा प्रज्ञाओं और दयानंदों पर की जा रही कार्यवाही पर क्षोभ था शायद. ऐसा गुस्सा होना कोई ग़लत नही है . हमारी पुलिस दूध की धुली नही है कई बार उसके कार्य अनुचित पाये जाते हैं । वो मसला कोर्ट के जिम्मे है और कोर्ट देखेगी कि कौन दोषी है कौन नही





पर इस गुस्से में एक शहीद का अपमान कहाँ तक सही है?




मुंबई पुलिस ने अभी तक इस घटना में बहादुरी पूर्वक कार्यवाही की है। पुलिस के शीर्ष अधिकारियों ने आगे आकर कारवाही का नेतृत्व करते हुए अपने प्राणों की बलि दी है। इस जज्बे की सराहना होनी चाहिए .



करकरे साहब की बात करें तो सी एस टी पर जमा आतंकियों पर हमले का उन्होंने ख़ुद आगे बढ़ कर मुकाबला किया वो वरिष्ठ अधिकारी थे और पीछे से आदेश देते रह सकते थे लेकिन उन्होंने अपने जवानों के सामने एक उच्च आदर्श पेश किया। इस जज्बे का सम्मान किया जाना चाहिए. कुछ भाई लोगों ने लिख दिया है कि करकरे साहब हीरो बनने के चक्कर में मारे गए. तो उनसे हम पूछना चाहेंगे कि दिल मागे मोर की शैली में दुश्मन से लड़ जाने वाले विक्रम बत्रा के बारे में भी वो यही ख्याल रखते हैं? सीमाओं पर मारे जाने वाले हर बड़े अधिकारी के बारे में वो यही ख्याल रखते हैं?




क्यों सिर्फ़ करकरे की ही शहादत का मजाक बनाया जा रहा है क्यों अशोक कामते, सदानंद दांते और विजय सालस्कर की चर्चा नही हुई ?



हिंदू-मुस्लिम सोच में यह भूल जाना अफसोसनाक है कि जो शहीद हुआ है वो ड्यूटी पर आतंकियों का मुकाबला करते हुए शहीद हुआ है बेहद शर्मनाक है अपने शहीदों के बारे में बात करने का ये रवैय्या.


इन लोगों और मोहन चन्द्र शर्मा की शहादत पर सवाल उठाने वालों में फर्क क्या रह गया ?
एक भाई की सोच है कि करकरे को सिर्फ़ हिंदू आतंकवाद में ही महारत हासिल थी. अब उन्हें क्या पता किकरकरे एक वरिष्ठ आई पी एस अधिकारी थे और रा जैसी संस्था में काम कर चुके थे. उनके पिछले रिकॉर्ड काफ़ीअच्छे रहे थे. खैर जब इन भाई की सोच मालेगांव से आगे जा पाती तब !

जब समाज के चंद स्वयंभू ठेकेदार शहीद होने वाले पर इस तरह मजाक उडाने सा रवैय्या अपनायेंगे तो फ़िर कब तक जान पर खेल कर यूँ लड़ते रहेंगे। हमें बेहद अफ़सोस है अपने समाज के इस बँटवारे पर



इस तरह तो हो चुका आतंक का मुकाबला.



हमें बेहद अफ़सोस है !
हाँ इतना स्पष्ट कर दें कि शहीद नरकगामी नही होते !

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This entry was posted on Nov 27, 2008 at Thursday, November 27, 2008 and is filed under , , , , . You can follow any responses to this entry through the comments feed .

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