पलाश के फूल!  

Posted by निशा in ,



एक दोस्त के ब्लॉग पर पलाश के फूल पर कविता पढ़ने को मिली तो मन किया कुछ लिखना चाहिए।

पलाश के फूल से पहला परिचय!, आज सोचती हूँ तो हंसी आती है।

बहुत पहले की बात है। एक दिन हम कुछ दोस्त एक गेम खेल रहे, थे जिसमे हमे कुछ गेस करने होते थे। मुझे जिसके बारे मे गेस मारने थे, उसका पसंदीदा फूल पलाश का फूल था और तब तक मुझे पता ही नही था की ये चीज़ क्या होती है। मेरा गेस ग़लत निकला। मैने ये मानने से मना कर दिया कि ऐसा कोई फूल होता भी है तो उसने एक कविता की लाइने बतायीं-

आए महंत बसंत

बैठे किंशुक छत्र लगा बाँध पाग पीला
मैं थोड़ा फ्र्स्टू टाइप की थी मुझे लगा कि उसने मुझे ग़लत गेस करने के लिए ही पलाश का फूल चुना था।

मै उससे जम कर गुस्सा हुई और कई दिन तक बात नही की।

काफ़ी दिन बाद मुझे खुद ही अपना गुस्सा भूलना पड़ा, क्योंकि उसने मेरे गुस्से को नोटिस ही नही किया।

बहुत दिन बाद जब उसे बताया कि मै उससे इस बात को ले कर गुस्सा थी तो उसने बड़ी मासूमियत से कहा कि अब कभी गुस्सा होना तो प्लीज़ बता देना कि तुम गुस्सा हो नही तो हमे पता ही नही चल पाएगा।

उसके बाद आजतक जब किसी को ये फूल पसंद करते हुए सुनती हूँ तो हँसी आती है खुद पर। जब किसी की कोई पसंद अनोखी होती है तो लगता है कि ये ही पसंद क्यों? किसी को पलाश का फूल पसंद है तो ज़रूर इसके पीछे कोई वजह होगी। हमारी कुछ उम्र ही ऐसी थी कि हम गेस करते थे कि कुछ इश्क-विश्क जैसा मामला होगा। हमने बहुत कोशिश की पता लगाने की।

लेकिन एक चुप तो हज़ार चुप!

कभी पता ही नही लगा कि आख़िर क्या कोई ऐसा मामला था। उसकी इस फूल की दीवानगी अभी तक है और उसके जन्म दिन के दिनो मे ही पलाश का फूल खिलता है मज़े की बात है कि वो इकट्ठा करता है ढेर सारे फूल अभी तक.



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This entry was posted on Nov 23, 2008 at Sunday, November 23, 2008 and is filed under , . You can follow any responses to this entry through the comments feed .

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