कष्ट में हम हिंदू भी हैं  

Posted by निशा in ,

आज भगवान् कि बड़ी याद आई कुछ नही समझ में आया तो सोचा कि कुछ लिख ही डाला जाय।
मेरा घर थोड़ा धार्मिक प्रवृत्ति वाला रहा है और धार्मिक कामों में सब को हमेशा खुशी का अनुभव होता रहा है।हमारा हिंदू धर्म भी कितना रोचक है इत्ती संख्या में देवी देवता और चुनने की आजादी कि क्या कहिये. कितनीमजा आती है कि आप किसी की भी पूजा कर सकते हैं. गाय को पूजिए या गंगा को, हनुमान जी के आगे मत्थाटेकिये या फ़िर दुर्गा जी की आरती कीजिये. चाहे एक साथ सब की पूजा कीजिये. मेरे घर के छोटे से मन्दिर मेंकुछ नही तो -१० भगवानो को जगह मिली हुई है और सब बड़े प्रेम से एक दुसरे के साथ रहते हैं.
इत्ते देवी देवताओं में मेरे पसंदीदा हनुमान जी रहे हैं। वैसे तो सबसे सुंदर गणेश जी लगते हैं पर जो भोलापन औरसुन्दरता हनुमान जी में है वो किसी और में नही दिखती . भला हर कोई भक्ति के लिए ख़ुद को सिन्दूर से कहाँढक सकता है.
मेरे गाँव में एक छोटा सा मन्दिर जैसा है जिसमे हनुमान जी विराजमान हैं। एक पेड़ भी है पीपल का जिसपे भैरोबाबा की पूजा होती है और वहीँ पर एक छोटा सा शिवलिंग भी है. वहीँ पास में एक पोखरा है वहां तीज त्योहारों परपूजा होती है पोखरे में मछलियाँ है लेकिन उन्हें मारा नही जाता मछली पकड़ने वाले दुसरे तालाबों का सहारा लेतेहैं.
ये मन्दिर, पेड़ के भैरो बाबा और शिवलिंग और पोखरा गाँव के लोगों के जीवन में शामिल हैं। शादी व्याह , जन्म-मृत्यु होली-दिवाली सब में भागी दार होते हैं. गाँव से जब शादी हो के लड़की विदा होती है तो विदा लेने इनतक भी जाती है.
कभी कभी कोई साधू बाबा आते थे ( अब शायद ऐसे साधू बाबा नही आते ) पोखरे के पास किसी का बगीचा है उसमेवो ठहरते और कीर्तन आदि करते रहते। गाँव वालों के लिए अच्छा मौका होता था हर किसी के घर से थोड़ा बहुतआटा दाल जाता . साधू बाबा लोग ख़ुद अपना खाना वहीँ बगीचे में बनाते और खाते. कभी एक दिन पता चलता किवो चले गए किसी और जगह.
इन साधू बाबा लोगों से कोई उनका घर जाती वगैरह नही पूछता था और इनके पास कुछ रहता भी नही था एकपोटली के सिवा। बगीचे में रहने के दौरान गाँव वालों ने जो दे दिया वो खा लिया और आशीष दिया और चलते बने.
हमारे देश में सब कुछ ऐसे ही सहज बना रहता था.
जो बाहर जाते वो कुछ और जगह पूजा करने का सुख पाते। मुझे खूब घूमने का मौका मिला बचपन से ही।फैजाबाद में अयोध्या की हनुमान गढ़ी, बड़ी बुआ बनारस में संकट मोचन, दिल्ली में हज़रात निजामुद्दीन, अजमेर शरीफ, मुंबई में हाजी अली सिद्धि-विनायक, विन्घ्याचल में अष्टभुजी , वैष्णो देवी एक लम्बी लिस्ट हैऔर हर जगह श्रद्धा अपने आप जग जाती रही है. हाँ देश के बाहर चाहे जितना अच्छा मन्दिर, दरगाह, चर्च होवहां श्रद्धा की जगह कौतुहल होता है एक नई चीज देखने का . पर इन सब जगहों के बावजूद जब मुसीबत मेंभगवान् की याद आती है तो फ़िर गाँव का वही छोटा सा हनुमान मन्दिर याद आता है. जब साधू संतों की बातआती है तो वही अनजाने से साधू बाबा याद आते हैं जिनको शायद याद सँभालने के बाद कभी देखा भी नही है.
सच अपने देश में धर्म इतना ही सहज रहा है
पर आज लगता है कि चीजें बदल रही हैं। बड़े बड़े नाम वाले और बड़ी बड़ी गाड़ियों वाले महंत नए साधू हैं.
गाँव का मन्दिर ठीक हों हो पर आजकल रामसेतु जिसकी कभी पूजा भी की हो जरूर बचा रहना चाहिए।
चलो ये भी ठीक है जो माने उनके संत, जो माने उनके मन्दिर पर बुरा तो तब लगता है जब ये लोग मेरे अपने देशको मेरे अपने धर्म के नाम पर बाटना चाहते हैं. बुरा तब लगता है जब कोई जाने कैसे बना पीठाधीश धर्म केनाम पर अपने ही देश के उन लोगों को मरना चाहता है जिनकी गलती सिर्फ़ इतनी है कि वो उसी धर्म के हैं जिसधर्म के कुछ लोगो ने इन बाबाओं जैसे ही ग़लत काम किए.
हमारे सहज और सुंदर समाज में जहर घोला जा रहा है. ये दोनों धर्मों के धमाके करने वाले लोगों की मिलीभगतहो तो कोई आश्चर्य नही.
आज जब मै भगवान् को याद कर रही थी तो अपने गाँव की याद आई अपने भगवानो की याद आई।
मैंने अपने उस छोटे से मन्दिर के छोटे से हनुमान जी से पूछा कि क्या आप जानते हैं ऐसा क्यों हो रहा है?
वो वैसे ही मुह पर ढेर सारा सिन्दूर पोते मुह फुलाए बैठे रहे।

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This entry was posted on Nov 15, 2008 at Saturday, November 15, 2008 and is filed under , . You can follow any responses to this entry through the comments feed .

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