मीडिया की धुन पर नाचती भाजपा और संत मंडली  

Posted by roushan in

प्रमोद महाजन के ज़माने से ही भाजपा का मीडिया मैनेजमेंट कमाल का रहता रहा है पर आजकल लगता है मीडिया की समझ भाजपा और उसके संत साथी कर पाने में असफल हो रहे हैं। इसका ज्वलंत उदाहरण है वर्तमान मालेगांव जांच पर इस समूह के बयान।
अभी कुछ दिन पहले मीडिया में जोर शोर से हंगामा मचना शुरू हुआ कि मुंबई पुलिस ने यु पीके एक विधायक से पूछतांछ करने कीअनुमति मांगी है फ़िर क्या था अटकलों का बाजार गर्म हो चला। और शुरू हो गई बयान बाजी। नाम गोरखपुर का आया और आदित्यनाथ कूद पड़े मैदान में । उन्हें लगा कि पुलिस उन तक या उनके किसी समर्थक तक पहुँचने वाली है और उन्होंने शोर मचाना शुरू कर दिया। देश के दुसरे हिस्सों से स्व घोषित संतों के बयान भी आने लगे कोई पल्ला झाड़ता कोई मुंबई पुलिस और कांग्रेस पर आरोप लगाता । राजनाथ सिंह तो तैश भरे स्वरों में बताते रहे कि कैसे आदित्यनाथ शराफत के पुतले हैं और उनको पूरी भाजपा जानती है।
इधर मुंबई पुलिस चुपचाप कानपुर पहुंचती है और जिसे पकड़ती है उसे शायद भाजपा और उसके साथी जानते तक नही थे। सवाल उठता है कि क्या ये शोरगुल चोर की दाढ़ी में तिनके का मामला था या फ़िर भाजपा सच में यही समझ रही है कि ये कांग्रेस की चाल है और जो लोग पकड़े गए हैं वो निर्दोष हैं। क्या अगर पुलिस और सरकार हिन्दुओं को बदनाम करने कीसाजिश पर ही काम कर रही थी तो सुधाकर उर्फ़ दयानंद उर्फ़......... जाने क्या क्या को पकड़ने से अधिक बेहतर आदित्यनाथ या किसी और ऐसी मछली को पकड़ना नही रहता? पकड़े गए स्वघोषित शंकराचार्य से तो उसे वो फायदा नही मिलने वाला है अपनी साजिश में। (सुनने में आया है कि इस व्यक्ति ने महापीठाधिश्वर की उपाधि के लिए काशी विद्वत परिषद् को लाखों रूपये दिए थे सच क्या है पता नही. )

वास्तव में भाजपा को शायद उनके दोषी या निर्दोष होने की जानकारी ही नही है। उसे तो महसूस हो रहा है कि प्रज्ञा का मामला उसे चुनावी फायदा दिला सकता है आखिर कांग्रेस को हिंदू विरोधी साबित करने का अच्छा मौका है। सभी जानते हैं कि ऐसी जांचों में दोषी या निर्दोष का सवाल कोर्ट की कार्यवाही के बाद ही समझ में आ पायेगा और उसमे समय है हो सकता है चुनाओं के नाव इसी से पार हो जाय।
ऐसा ही शोर प्रज्ञा के नारको टेस्ट को लेकर मचा हुआ है। लोग कह रहे हैं कि उसके टेस्ट में कुछ नही मिल रहा है इसलिए पुलिस बार बार उसके टेस्ट करवा रही है। जिन्हें इस टेस्ट के बारे में जानकारी होगी वो जानते होंगे कि इस टेस्ट में सवालों की एक लिस्ट होती है और उस लिस्ट के पूरे होने को टेस्ट का पूरा होना माना जाता है । अब ये लिस्ट एक सेशन में पूरी हो या कई में अब इसे आप एक टेस्ट के कई सेशन मान लें या कई टेस्ट। प्रक्रिया तभी पूरी होती है जब प्रश्न पूरे हो जाते हैं॥
अब इसे मीडिया प्रश्नों की संख्या और टेस्ट की संख्या का शोर मचाती हुई घूम रही है और भाजपा और उसके साथी उसी पर आपत्ति करते हुए।
अभी राजनाथ सिंह ने सवाल उठाया कि पुलिस के पास अगर सबूत हैं तो वह उसे जनता के सामने क्यों नही लाती । और मामलों में तो मीडिया पर विश्वास करके बयानबाजी जारी रह रही है मगर यहाँ नही । यहाँ अगर मीडिया में खबरें आ रहीं हैं कि प्रज्ञा से पूछा गया कि मृतकों की संख्या कम क्यों है या वह अपनी मोटर साइकिल के बारे में पूछती है तो इसका मतलब क्यों नही लगाया जा रहा है . क्या जो अपने मुफीद लगे उसी में मीडिया की बात मानी जानी है?
एक सवाल और भी उठता है दिल्ली में पकड़े गए युवकों के बारे में किसी ने सबूतों की मांग की होती तो उसे कैसे लिया जाता।
लगता है इस जांच के सिलसिले में लोग उन लोगों को भूल से गए हैं। लेकिन विश्वास कीजिये पुलिस नही भूली है और अभी उन्हें गुजरात पुलिस ने दिल्ली पुलिस से रिमाण्ड पर ले रखा हुआ है और गुजरात ने चार्जशीट भी दाखिल कर दी है उधर दिल्ली पुलिस नाराज है कि गुजरात पुलिस अधिक समय ले रही है और उनका काम रुका पड़ा है।
खैर चलते चलते आदित्यनाथ के बयान में शामिल एक बात। आदित्यनाथ ने अपने बयान में कहा कि अगर हिंदू समाज ऐसी (मालेगांव जैसी ) कार्यवाहियां करने ही लगे तो फ़िर तो देश सुधर ही जायेगा
सवाल यह है कि क्या इसे आग भड़काने वाली और आतंकवाद को बढ़ावा देने वाली बात नही माना जाय? और क्या उनकी बातों से उनके दल और उससे सम्बन्ध रखने वाले लोग सहमत हैं?

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This entry was posted on Nov 13, 2008 at Thursday, November 13, 2008 and is filed under . You can follow any responses to this entry through the comments feed .

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