आपसी सामंजस की ज़रूरत है!  

Posted by रेवा स्मृति (Rewa) in , ,

मैं नारी और पुरुष के आपसी सामंजस की बात कर रही हूँ, और दोनों को एक ही धुरी पर चलने की बात कर रही हूँ. मैं भूत के आधार पर वर्तमान की बात ना कर, बल्कि भविष्य के बारे में सोच, उसे आधार मानकर वर्तमान में बात कर रही हूँ. आने वाले पीढ़ी के बारे में सोच आज को सकारात्मक रूप देने का प्रयास दिमाग़ में रख उसके बारे में चर्चा कर रही हूँ. यह कहना अतिशयोक्ति नही होगा कि नारी और पुरुष एक ही सिक्के के दो पहलू हैं, एक दूसरे के बिना समाज़ के बारे में हम नही सोच सकते हैं, क्योंकि नारी और पुरुष एक दूसरे पर पूरी तरह से निर्भर हैं!

मेरा मानना है, आप भूत के आधार पर भविष्य की कल्पना नही कर सकते. हमारा वर्तमान भविष्य का मार्ग दिखाता है. आज अगर नारियाँ ये आवाज़ उठाती हैं कि उन्हें बराबरी का हिस्सा चाहिए तो उन्हें खुद ही आगे आनी होगी और ये सोचना होगा कि किस तरह पुरुषों से कंधे मिलाकर चल सके. पुरुषों के तरह संघर्ष करने में खुद को पीछे छोड़, और आरक्षण के बल पर वो ना तो आगे बढ़ सकती हैं, और ना बढ़ेंगी. क्योंकि सही मायने में आरक्षण का मुनाफ़ा भी उन्हें ही मिल रहा है जिन्हे वास्तव में इसकी जररूरत नही है!

आज आरक्षण की माँग ज़्यादातर बड़े शहरों की पढ़ी लिखी महिलाएँ करती हैं, लेकिन उन्हें इसकी जररूरत नही है, ये ख़ुद को बुजदिल और पुरुषों से किसी भी बात में पीछे नही मानती हैं. जररूरत किन्हें है इसकी, ये पहचानना भी बहुत ज़रूरी है. वैसे लड़कियाँ अगर ख़ुद आगे बढ़ना चाहेगी तो उन्हें कोई नही रोक सकता है, लेकिन आज भी हमारी मानसिकता में कोई ख़ास बदलाव नही आया है. मैं बहुत करीब से ज़िंदगी को देखने की कोशिश कर रही हूँ और अभी बहुत कुछ देखना बाँकी है!

अपने घर का पुरुष सभी स्त्रियों को अच्छा एवं नेक लगता है, लेकिन दूसरा नलायक. ऐसा पुरुषों के साथ भी है, उन्हें अपने घर की नारियाँ देवी लगती है, बांकी बेकार! ऐसे नज़रिया को बदलना बहुत ज़रूरी है. सभी इंसान में अच्छाई और बुराई होती है, इसका मतलब यह नही की पूरे समाज़ पर दोषारोपण करना चाहिए. अगर कोई भी नारी सशक्तिकरण की बात करती हैं तो उन्हें सबसे पहले अपने आस पास के झुग्गी झोपड़ी में जाकर दीप जलाने की बात करनी चाहिए, क्योंकि आज इसकी जररूरत है!

आवाज़ उठाने से पहले एक कदम आगे बढ़कर वहाँ सार्थक काम करने की ज़रूरत है, फिर ख़ुद बख़ुद सभी में बदलाव आएगा. हमे समाज में बदलाव लाने के लिए खुद ही आगे बढ़ना होगा, इसलिए ज़रूरत है ख़ुद के अंदर झाँकने की, अपनी मानसिकता में परिवर्तन लाने की. ख़ुद बदलो सब बदलेगा!

और हाँ, ये पोस्ट मैं बहसबाज़ी करने के लिए नही लिखी हूँ, आप कृपया यहाँ सजेशन दे सकते हैं कि हम कैसे एक सार्थक समाज के बारे में सोचें एवं हमें इसके लिए क्या करना चाहिए. अगर ये नही हो सकता है तो फिर आराम से इग्नोर करें.


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This entry was posted on Nov 16, 2008 at Sunday, November 16, 2008 and is filed under , , . You can follow any responses to this entry through the comments feed .

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