कल चंद्रयान-१ का प्रक्षेपण किया गया। कई ब्लोगर्स ने उसे अपने अपने तरीके से पेश किया। हम भी खोज खोज कर पढ़ते रहे लोगों का उत्साह और उनका तरीका चीजें पेश करने का। एक साहब की बातें थोड़ा खटकी तो हमने सोचा कि उस पर कुछ लिखा जाय।
उन साहब ने ख़बरों को परोसा था अपने ब्लॉग में पहली ही ख़बर थी चंद्रयान के बारे में। बड़े उत्साह से उन्होंने मिशन की सफलता की कामना की थी और मांग की थी कि यह बताया जाय कि यान में कितने पुर्जे विदेशी और कितने स्वदेशी हैं। अगर वो जरा मेहनत करते तो इसरो ने काफ़ी जानकारियां अपनी वेबसाइट पर डाल रखी हैं.
खैर ये बात वो नही थी जो हमें खटकी। वो साहब जिन्होंने अपना स्क्रीन नेम अंग्रेजी में पसंद किया है जबकि उस शब्द का हिन्दी उतना ही प्रभावकारी और सरल है, आपत्ति करते हैं कि इसरो के वैज्ञानिकों ने प्रक्षेपण के बाद राजभाषा हिन्दी में बोलना उचित नही समझा।
जो लोग वैज्ञानिक शब्दावलियों और क्रियाकलापों से वाकिफ होंगे वो जानते होंगे कि प्रक्षेपण के पूरे क्रियाकलाप में सबकुछ अंग्रेजी में ही चलता रहता है। और प्रक्षेपण के तुंरत बाद वो वैज्ञानिक, जो राजनेता नही हैं कि दिखावा करते फिरें, उसी भाषा में बोल सकते हैं जिसके वो उस समय अभ्यस्त हों। वो वैज्ञानिक कोई जानकारी बढ़ने का कार्यक्रम नही कर रहे थे अपना उत्साह प्रदर्शित कर रहे थे।
हम सब अपनी भाषा से प्रेम करते हैं। इसका यह मतलब कतई नही है कि दूसरी भाषाएँ महत्वपूर्ण नही हैं। ज्ञान-विज्ञानं की सार्वभौमिक भाषा के रूप में अंग्रेजी के महत्त्व को नकारने से हमारी हिन्दी का भला या बुरा नही होगा।
जो चीज सहजता में आगे बढती है वो सफल होती है। भाषा को भी सहज रहने दें तो बेहतर होगा। किसी से तुलना या हीनभाव की कोई जरुरत नही हैं हमारी हिन्दी और अन्य भारतीय भाषाओँ को। हिन्दी ब्लोग्स का विकास यही दर्शाता है की स्वस्फूर्त चीजें ज्यादा मजबूती से बढ़ सकती हैं।
छोटी छोटी बातों पर दुखी होने की अपेक्षा यह अधिक अच्छा है कि हम बड़ी उपलब्धियों की खुशी मनाएं।
(ऊपर जिन ब्लोगर भाई का जिक्र किया है उनसे क्षमा याचना के साथ )
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on Oct 23, 2008
at Thursday, October 23, 2008
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