नाभिकीय आपूर्तिकर्ता समूह में इस समय जम के जोड़ तोड़ चल रही है और वहीँ एक पत्र के खुलासे ने भारत में राजनीतिज्ञों को उत्तेजित कर रखा है। चलिए देखते हैं क्या है पत्र और क्या है उसके मतलब
गोपनीय पत्र
राष्ट्रपति बुश ने एक सांसद की एक प्रश्नावली के जवाब में ये पत्र जनवरी के आस-पास लिखा था उसमे उन्होंने भारत के परमाणु परिक्षण करने की दशा में अमेरिकी सरकार के संभावित क़दमों की चर्चा की है। पत्र में कई बातें हैं भारत को संवेदनशील तकनीकि न देने की भारत को आपूर्ति तुंरत रोकने की आदि आदि।
बवाल
बवाल यह है की प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने देश को गुमराह किया। अब सवाल ये उठता है की जो लोग आज ऐसी बातें कह रहे हैं क्या वो प्रधानमंत्री के बयानों का मतलब नही समझ रहे थे? धन्य हैं ये लोग जो सीधी बातें नही समझते हैं और इल्जाम दूसरों को देते हैं। प्रधानमंत्री जी ने स्पष्ट कहा था कि भारत को परमाणु परीक्षण का हक़ है और अमेरिका को प्रतिक्रिया का । और आप लोग क्या समझते हैं भारत को इस डील से परमाणु परीक्षण का हक़ मिलने जा रहा था? यह नागरिक समझौता है सैन्य नही । ये हमें समझना होगा।
1998 के परमाणु परीक्षण हमारी पीढी के लिए बहुत महत्वपूर्ण थे। उस समय हमें कई बातों का पता चला। सी टी बी टी क्या है , एन पी टी क्या है , भारत इन पर हस्ताक्षर क्यों नही करता आदि। उसी समय तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री ने भारत के तरफ़ से एकतरफा घोषणा की थी आगे परीक्षण न करने की। उस समय हमारे वैज्ञानिक समुदाय का सोचना था की अगर कोई बड़ा परिवर्तन नही आया तो हमें निकट भविष्य में परीक्षण करने की जरुरत नही होगी। जो आज शोरगुल कर रहे हैं उन्हें ये बताना होगा कि कौन सा ऐसा परिवर्तन आ गया है जिससे हमें परीक्षण करने कि जरुरत आ पड़ी है। उन्हें ये भी बताना होगा कि अगर ये डील नही होती है तब भी हमें परीक्षण करने पर प्रतिबन्ध झेलने पड़ेंगे तो फ़िर डील करके ही क्यों न झेलें । ऐसी वैज्ञानिक प्रगति किस काम की जिसका हम उपयोग ही न कर सकें ।
लोग शोर मचा रहे हैं कि सरकार अमेरिका को खुश करने के लिए कुछ भी करने को तैयार है। अगर ऐसा होता तो अब तक मामला नाभिकीय आपूर्तिकर्ता समूह के पास लटका न होता सरकार ने बातें मान ली होती ।
हर बात में मीन मेख निकालने कि जगह अगर भाजपा जैसे समूहों ने सरकार को मदद कि पेशकश कि होती तो शायद वो अपनी छवि रचनात्मक बना पाते।
खैर अभी तो बात विएना में अटकी पड़ी है
देखिये क्या होता है
पर मेरी सलाह इन देशभक्तों को यही है कि देश हित सोचें पार्टी का हित अपने आप साध जाएगा ।
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on Sep 6, 2008
at Saturday, September 06, 2008
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