पछतावा!  

Posted by roushan in

उस आख़िरी दिन

पलाश के नीचे

अनायास ही

या शायद सायास

टिकी रहीं उसकी निगाहें

देर तक हम पर

( चुपके से देखा था हमने )

आँखें उदास हो चली थी

आसमान मे सूरज तप रहा था

और पलाश पर अंगारे थे

फिर वो चली गयी।

तपता सूरज,

अंगारों से भरा पलाश

और उदास निगाहें

सब कुछ तो है

याद की उस रील में

मेरे सिवा!

मै तो फोटो ले रहा था न!

आगे बढ़ कर,

उदासी हटाने और

आँखों में उमंग भरने की जगह।

याद नही था!

कि फ़ोटोग्राफ़र की फोटो नही होती ।

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This entry was posted on Apr 3, 2008 at Thursday, April 03, 2008 and is filed under . You can follow any responses to this entry through the comments feed .

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