स्वार्थ!  

Posted by निशा in ,

(इस प्रसंग के पात्र काल्पनिक नही हैं और वास्तविक जिन्दगी से उनका गहरा रिश्ता है। ये प्रसंग दिमाग में ऑरकुट पर एक स्क्रैप देख कर उपजा है।)
नीलू ने झटके से स्कूटी रोक दी अब वो कहीं दूर देख रही थी।
-दी! वो रही आपकी पंखुडी ब्लू सूट में। उन लोगो का क्लास ख़त्म हो गया है मै आपको उससे मिलवा दूँ?
नही मैं मिल लूँगी तुझे लेट हो रही होगी।-
हाँ वो तो है। अच्छा अब मै चलती हूँ। ये स्कूटी यही खड़ी कर देना और मुझे टाइम पर लेने आ जाना।
नीलू उछलते कूदते चल पड़ी अपने क्लास की ओर और मै रुक कर देखने लगी।तो ये है पंखुड़ी। मैने सोचा। मै स्कूटी पर ही बैठी रही. अचानक मुझे डर लगने लगा. अनिमेष कि बातें याद आने लगी. उसके अपने अंदाज में उसने सोचते हुए कहा था. शायद अच्छी लगती है पता नही पर मै बात बढ़ाना नही चाहता इसीलिए मैने आजतक उससे बात तक नही की है. वो अनिमेष जिसे मै चाहती थी और सोचती थी की कभी ना कभी उसके भी दिल में मेरे लिए ऐसा ही कुछ जागेगा, किसी और के प्रति आकर्षित था और उसकी आँखें कहती थी की ये आकर्षण कुछ ज़्यादा ही है.
मै क्यों मिलना चाहती थी पंखुड़ी से ये तो मुझे नही पता था पर उसे देख कर ऐसा लग रहा था की मै अनिमेष को खो ही चुकी हूँ। कितनी स्वीट दिख रही थी वो. मैने स्कूटी के शीशे में खुद को देखा. आँख मे जलन के भाव थे और मुझे अपना चेहरा अच्छा नही लगा।
वो एक और लड़की के साथ थी और अब एक पेड़ के गोल चबूतरे पर आ के दोनो बैठ गयीं। मैने साहस बटोरा और उसकी तरफ बढ़ गयी।
-एक्सक्यूस मी ये थर्ड ईयर बॉटेनी की क्लास कहाँ होती है?
मैने सीधे उसी से पूछा वो जैसे किसी सोच में थी उसके साथ की लड़की ने एक तरफ इशारा किया मैने उस दिशा में देखा तक नही।
-आप किस क्लास की हैं?
-थर्ड ईयर बॉटेनी
फिर साथ वाली लड़की ही बोली मैं थोड़ा झिझकी
- ये अनिमेष आपके ही क्लास में है ना? वो चला गया क्या?
अनिमेष नाम सुनते ही जैसे उसके कान खड़े हो गये दोनो मुझे एकदम से देखने लगीं।
-आपको अनिमेष से मिलना है?
साथ वाली लड़की ही बोली
-हाँ वो मेरा पुराना क्लासमेट है मै यहाँ आई थी तो सोचा की उससे मिल लूँ।
दोनों अभी भी मुझे घूर सी रही थी लगभग पंखुड़ी की आँखे कह रही थी कि इसे अनिमेष से कुछ मतलब तो ज़रूर है मेरा डर एकदम से पुख़्ता हो गया।
तू तो गयी बेटा। ये लड़की ले जाएगी अनिमेष को तुझसे छीन कर।
दोनो ने एक दूसरे को देखा। पंखुड़ी अब कुछ असहज सी थी। साथ वाली लड़की ही बोली फिर से
-वो आज नही आया है। शायद कही गया है
-मतलब शहर मे नही है?
- शहर में होता है तो कॉलेज ज़रूर आता है पर वो कल भी नही आया था।
ये पंखुड़ी गूंगी है क्या
मैने मन में सोचा। अब और पूछने को कुछ नही था मै भी अधिक असहज हुई जा रही थी।
- अच्छा थॅंक्स मै चलती हूँ।
मैंने बेमन से कहा मै मुड़ने को ही हुई तो अचानक एक दूसरी आवाज़ सुनाई दी।
- आपके पास उसका नंबर होगा पूछ लीजिए शायद हो ही शहर में
-ओह तो आप बोलती भी हैं
मैने मन मे सोचा
- असल में बहुत दिनो से हम मिले नही हैं तो नंबर भी नही है कोई। अगर आप के पास हो तो। वो बुरा नही मानेगा असल मे खुश ही होगा हम बहुत पुराने दोस्त हैं।
दोनो फिर एकदुसरे को देखती रहीं
-प्लीज़ उसे मत बताइएगा कि हमने दिया है नंबर
पंखुड़ी झिझकते हुए बोली।
- आपने अपना नाम ही कहाँ बताया है जो मै उसे बता दूँगी कि आपने दिया है
मै मुस्कुराइ
- ओह मै पंखुड़ी और ये सोनाली
वो अपना बैग खोलते हुए बोली
- मतलब उसे बताना है कि नंबर पंखुड़ी और सोनाली ने दिया है
- ओह नही प्लीज़ मै तो आपको नाम बता रही थी उसे मत कहियेगा
उसका हाथ रुक गया और वो घबडा सी गयी
- ट्रस्ट मी वो बुरा नही मानेगा। लेकिन आप कह रहीं हैं तो मै उसे नही कहूँगी हाँ अगर आप लोग ही ना बता दें।
जिन लोगो ने कभी किसी को चाहा होगा वो जानते होंगे कि कब किसी का नाम सुनकर किसी के हाथ कापने लग जाते हैं कब और क्यों किसी के बारे में बात करने का मन भी करते है और बात हो भी नही पाती और कब किसी और के मूह से उसका नाम सुनकर और ये जान कर कि कोई और उसके बारे मे हमसे ज़्यादा जानता है दिल बेतहाशा धड़कने लगता है। मैने पंखुड़ी के सामने ही अनिमेष के घर फ़ोन किया मुझे पता था कि वो घर पर नही है पर पूछा और अपना संदेश छोड़ा। मुझे पता था कि अगर उसके मन मे अनिमेष के लिए कुछ होगा तो मुझे पता चल जाएगा। और पता चल गया। मै जान चुकी थी कि सिर्फ़ अनिमेष ही नही चाहता उसे बल्कि वो भी चाहती है अनिमेष को। मै उदास हो चली थी. मै जानती थी कि दोनो एक क्लास मे पढ़ते हैं और कभी ना कभी दोनो एक दूसरे कि फीलिंग्स जान ही जाएँगे और तब मै खो दूँगी अनिमेष को हमेशा के लिए. मै मनाती रही कि दोनो एक दूसरे से कुछ ना कह पाएँ. ये थर्ड ईयर है साल ख़त्म होते ही दोनो के लिंक्स टूट जाएँगे. काश!. मैने तय किया कि मै अनिमेष को अपनी रीडिंग नही बताने वाली. कहीं कोई अपना बुरा खुद करता है. क्या हुआ कि वो नही चाहता मुझे पर कल किसने देखा है.
कहते हैं कि कभी कभी आपकी ज़ुबान पर सरस्वती का वास होता है और आप जो भी कहते हैं सच हो जाता है. साल ख़त्म हो गया. दोनो एक दूसरे से कुछ नही कह पाए. और अलग हो गये. मै अक्सर अनिमेष से पंखुड़ी के बारे में पूछती रही और वो हंस के टालता रहा. पर जब आप किसी को सच्चे मन से चाहते हैं तो उसकी उदासी पढ़ सकते हैं. आज इतने दिनो बाद भी जब अनिमेष उसके बारे मे सुनकर हंस के टाल देता है तो मुझे अंदर से कुछ चुभता है कि मै दोनो कि फीलिंग्स जानती थी मै दोनो के लिए कुछ कर सकती थी पर मैने नही किया.मुझे सबसे बुरा तो तब लगा जब मैने ये पूरी बात अनिमेष को बताई. मै पढ़ सकती थी उसके मन में क्या है. पर उसने मुस्कुरा कर मुझे डांटा कि जबर्दस्ती मै आपने को दोषी क्यों मानती हूँ. वो मुझे समझना लगा कि वो खुद इस बात को वही पर रोकना चाहता था. कहते हैं कि सच्चा प्यार खुशी देता है स्वार्थी नही होता. जब स्वार्थ आ जाता है तो प्यार नही मिल पाता. सच मे नही मिला ना पंखुड़ी को ना अनिमेष को, खैर मुझे तो मिलना ही नही था

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This entry was posted on Aug 13, 2008 at Wednesday, August 13, 2008 and is filed under , . You can follow any responses to this entry through the comments feed .

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