क्या होगा तिब्बत का!  

Posted by roushan in

अपने कई देशवासियों की तरह मैं भी तिब्बत के लोगो की खुशहाली का समर्थक हूँ और मानता हूँ कि अगर चीन की सरकार वहाँ के लोगो के दमन को जारी रखती है तो उन्हें हक़ है कि अपनी क्षमता के अनुरूप प्रतिरोध करें। ये तो बड़े दूर की बात है मगर मुझे मौका मिला होता तो मशाल को सुरक्षित अपने हाथो मी ऊंचा उठाये हुए भी मैंने तिब्बत के समर्थन मी नारे लगाये होते।

लेकिन ये सब कुछ निरर्थक है। हमारे यहाँ कहावत है की बिना अपने मरे स्वर्ग नही मिलता। यकीन कीजिये तमाम देशों के स्वंत्रता आन्दोलनों से तिब्बत के पास सीखने के लिए बहुत कुछ है। यकीन मानिए अगर भारत की आजादी के तमाम लड़ाके, चाहे वो शांतिप्रिय रहे हों या उग्र , अगर वो किसी और देश मे रह कर विरोध प्रदर्शन करते रहते तो किसी भी कीमत को भारत को आजादी नही मिलती। महात्मा गाँधी जैसे लोग दूसरे देशो मे रहकर सम्मान तो पा जाते पर आजादी नही पाते । इस तथ्य को जितनी जल्दी तिब्बती समझ जायें उतना ही अच्छा होगा उनके लिए। मैं मानता हूँ कि चीनी और ब्रिटिश सरकारों कि प्रकृति में अन्तर है पर लड़ना है तो फ़िर मोर्चे पर जाना ही होगा ।

अगर कोई ये समझता है कि बिना अपने फायदे के कोई भी देश तिब्बतियों के हक़ मे कुछ ठोस करेगा तो वह भ्रम का शिकार है । कोई और देश तो छोड़ दीजिये तमाम सहानुभूति के बावजूद अगर मैं भारतीय सत्ता में निर्णायक भूमिका मे होता तो मैं भी पहले नई दिल्ली के हित देखता । आखिर जब १९८० और १९७६ में शीत युद्ध के नम पर ओलम्पिक खेलों का बहिष्कार हो सकता है तो २००८ में तिब्बतियों के लिए क्यों नही? खेलों की पवित्रता से तिब्बतियों का मानवाधिकार कहीं ज्यादा बड़ा है। जब चीन को २००८ खेलों की मेजबानी दी गई थी तब इस बारे में नही सोचा गया तो अब क्या सोचा जाएगा। मैं मानता हूँ की एक बार दुनिया भर के खेल प्रेमी मायूस हो जायें तो कोई आसमान नही टूट पड़ेगा।

परन्तु तमाम बातों के बावजूद खेल शान से होंगे और तिब्बतियों का पीड़क चीन अपनी पीठ ठोंकेगा । प्यारे तिब्बती दोस्तों पिछले कुछ दिनों मे हमने देखा की आप जुझारू हैं और अपने हक़ को लेकर गंभीर हैं। अब आपको एक बात समझना होगा कि आपकी आवाज तभी सुनी जायेगी जब आप कि आवाज मजबूत होगी ।

तिब्बत के बाहर ही नही तिब्बत के अन्दर भी.

पछतावा!  

Posted by roushan in

उस आख़िरी दिन

पलाश के नीचे

अनायास ही

या शायद सायास

टिकी रहीं उसकी निगाहें

देर तक हम पर

( चुपके से देखा था हमने )

आँखें उदास हो चली थी

आसमान मे सूरज तप रहा था

और पलाश पर अंगारे थे

फिर वो चली गयी।

तपता सूरज,

अंगारों से भरा पलाश

और उदास निगाहें

सब कुछ तो है

याद की उस रील में

मेरे सिवा!

मै तो फोटो ले रहा था न!

आगे बढ़ कर,

उदासी हटाने और

आँखों में उमंग भरने की जगह।

याद नही था!

कि फ़ोटोग्राफ़र की फोटो नही होती ।